गर्लफ्रेंड को पसंद है प्राकृतिक सौंदर्य? तो इस ट्रेक से आ सकते हैं और क़रीब

Tripoto

2012 में जब ग्रेजुएशन करने दिल्ली आया तो मनाली के कुछ दोस्त बन गए | दोस्तों के साथ बैठने लगा तो मुझे बूटी मिल गयी | बूटी के लिए हिमाचल जाने लगा तो ट्रेकिंग का शौक लग गया | ट्रेकिंग के शौक से इम्प्रेस होके दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक दोस्त की दोस्त से दोस्ती हो गयी |

लगभग हर दिन कॉलेज से फ्री होकर हम दिल्ली घूमने निकल जाते थे | मजनू का टीला में शॉपिंग से लेकर पंडारा रोड पर खाने तक हमने एक दूसरे के साथ खूब वक़्त बिताया | हमारी काफ़ी आदतें मिलती थी, सिवाय एक के |

उसे शराब भाती थी और मुझे भंग |

पूछने पर उसने बताया कि उसे भंग सूट नहीं करती | जब भी जॉइंट पीती है, नर्वसा जाती है | इसलिए क्लब में सिर्फ़ कुछ ड्रिंक्स लेती है, उसके अलावा कुछ नहीं |

मुझे पता है कि हरेक की अपनी पसंद होती है, मगर मैं जानता था कि उसके बुरे ख़याल उसके सबसे पहले अनुभव के हैं, जब उसने पहली बार जॉइंट पिया होगा | असल में भंग का मज़ा लेने के लिए ज़रूरी है कि आप भंग कहाँ और किसके साथ पी रहे हो |

मेरा पहला अनुभव मनाली में दोस्तों के साथ था, तो मुझे पता था कि इसका डर दूर करने के लिए मुझे इसे दिल्ली से दूर ले जाना होगा |

लड़की फिट तो थी, मगर उसने कभी ट्रेकिंग नहीं की थी | तो मैं चाहता था कि उसे किसी ऐसी जगह ले जाउ जहाँ वो आसानी से चढ़ भी जाए और ट्रेकिंग के बाद जब वो आत्म-विश्वास से उड़ रही होगी तो मैं एक बढ़िया सा जॉइंट रोल करके आपस में शेयर करूँगा |

इसके लिए मैनें ट्रेक चुना खीरगंगा | आसान सा ट्रेक है, 4-5 घंटे में पूरा हो जाता है | शानदार जगह पर है | और ऊपर ट्रेक की समिट पर रहने की जगहें भी बढ़िया है |

मैनें उसे अपने पूरे प्लान के बारे में ना बता कर सिर्फ़ ट्रेकिंग के बारे में बताया | उसके हाँ कहते ही रेड्बस से मनाली जाने की दो टिकट बुक करली | प्लान था पहले मनाली तक जाएँगे, वहाँ घूम-फिर कर बस से बर्शेनी और वहाँ से खीरगंगा का 14 कि.मी. का ट्रेक शुरू |

दिल्ली से वोल्वो में बैठ कर हम मनाली के लिए निकल गए | फिर मनाली में एक रात रुकने के बाद तड़के बस लेकर भुंतर, फिर भुंतर से बस बदल कर बर्शेनी |

बर्शेनी इस रूट का आख़िरी स्टॉप है और यहाँ सिर्फ़ 2 बार बसें आती-जाती हैं | एक तो सुबह वाली और एक शाम को |

हम सुबह वाली से जब बर्शेनी पहुँचे, देखा कुछ लोग अपनी मोटर साइकिलें बर्शेनी के कैफ़े के बाहर खड़ी कर रहे हैं | ये बाइकर्स थे, जो ट्रेकिंग करने की तैयारी कर रहे थे | कैफ़े में कई फिरंगी भी बैठे थे, कुछ लड़कियाँ हूला-हूप को अपनी कमर पर गोल-गोल नचा रही थी |

गरमा-गरम चाय के साथ मैगी परोसी जा रही थी | हमने भी चढ़ाई शुरू करने से पहले कुछ हल्का-फुल्का खाना सही समझा |

एक मैगी की प्लेट आपस में शेयर करने के बाद हम खीरगंगा की ओर निकल गये |

खीरगंगा के लिए निकलते ही चढ़ाई नहीं, बल्कि उतराई आती है | बर्शेनी में जहाँ सड़क ख़त्म होती है, वहाँ से एक किलोमीटर दूर बने बाँध से नीचे उतरना पड़ता है | तो जिसे ट्रेकिंग पसंद ना भी हो, उसे भी मज़ा आने लगता है | बाँध से नीचे उतरकर पहाड़ के सहारे-सहारे पगडंडी पर चलने लगे | शुरुआती 3-4 किलोमीटर कोई ख़ास चढ़ाई है ही नहीं, सिर्फ़ पहाड़ के सहारे-सहारे पगडंडी चलती रहती है | तो पहली बार मेरे साथ ट्रेकिंग करने आई मेरी महिला मित्र का जोश उछालें मार रहा था | उसने तेज़ तेज़ कदमों से चलते हुए मुझे पीछे छोड़ दिया, और लगी मुँह चिढ़ाने | कोई बात नहीं, मैं चाहता था कि इसका जोश ऐसा ही बना रहे, क्यूंकी रुदरनाग झरने को पार करने के बाद पगडंडी सीधे जंगलों से होती हुई ऊपर चढ़ती है | चढ़ाई भी ऐसी है कि अच्छे-भले इंसान को तोड़ कर रख दे |

और हुआ ऐसा ही | रुदरनाग झरने पर बने पुल को बड़े ध्यान से पार करने के बार मैडम ने हथियार डाल दिए | बोली अब मुझसे ना चढ़ा जाएगा | फिर मैनें जब एक कंधे पर अपना और दूसरे कंधे पर उसका बैग डाला तो थोड़ा उठकर चलने लगी |

पगडंडी के सहारे पार्वती नदी टूट कर बह रही थी | पानी गिरने का शोर, चीड़ के पेड़ों से छनकर आती हवा, घास की खुश्बू थकान मिटा देती है | मुझे तो वैसे ही चढ़ाई की आदत थी, मैडम अपना बैग मुझे देकर तितली की तरह-इधर उधर मंडराने लगी | मुझे दिल्ली के सेलेक्ट सिटी वॉक की याद आ गयी, जहाँ एक बार पहले भी मैं सेल के दिन मैडम के बैग ढोते घूम रहा था | कहीं भी ले जाओ, इंसान तो वैसा ही रहता है |

साढ़े चार-पाँच घंटे की चढ़ाई रुकते रुकाते कब 6-7 घंटे की हो गयी पता ही नहीं चला | दो बैग लाद कर चलने से मेरे पैर जवाब दे रहे थे, मगर ये भी पता था कि मैं ही तो लाया हूँ, अब मैं ही हार मान कर नहीं बैठ सकता | दोनों बागॉन को कमर पर एडजस्ट करके मैं नीचे देखता चलता रहा, और कुछ 20-25 मिनट बाद हम खीरगंगा समिट पर पहुँच गये |

समिट पर रहने की काफ़ी बढ़िया सुविधा है | लकड़ी के प्राइवेट कॉटेज भी हैं, तंबू भी हैं और यहाँ बने कई सारे कैफ़े में भी रुक सकते हो |

कॉटेज का किराया 200 रुपये रात के हिसाब से था, जिसमें रात का खाना शामिल था | यहाँ बने कैफ़े आपको रहने के लिए तंबू भी दे सकते हैं | मगर अगर रात को मौसम खराब हुआ और बारिश आ गयी तो बड़ा अजीब लगता है | कैफ़े में सोना चाहो तो कैफ़े में भी सो सकते हो | 100-200 रुपये में आपको कैफ़े में सोने के लिए गद्दे मिल जाएँगे | एक कैफ़े में करीब 10-15 गद्दे लगे होते हैं |

मैनें ऊपर पहुँच कर सबसे पहले कॉटेज में सामान रखा, कॉटेज में काम करने वाले लड़कों से 2 तोला माल लिया और फिर मैडम को साथ लेकर नहाने और थकान उतारने ऊपर बने गर्म पानी के कुंड की तरफ चला गया |

तंबुओं से करीब 50 मीटर ऊपर मर्द और औरतों के लिए नहाने के अलग-अलग कुंड हैं | मर्दों का थोड़ा नीचे है और औरतों का कुछ ऊपर | दोनों के लिए कपड़े बदलने की जगह भी अलग-अलग हैं | यहाँ कुंड में सल्फर से पानी गर्म होता रहता है | पानी इतना साफ कि कुंड के नीचे का पैंदा दिखता है | कुंड में घुसने से पहले पास के पाइप से आते गर्म पानी से नहाना सभ्य समझा जाता है | किसी तरह का कोई हुड़दंग नहीं, सब लोग आस-पास के पहाड़ों और ढलती शाम का मज़ा लेते हुए आराम से कुंड में बैठे थे |

Photo of गर्लफ्रेंड को पसंद है प्राकृतिक सौंदर्य? तो इस ट्रेक से आ सकते हैं और क़रीब 1/1 by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
श्रेय : लैंड ऑफ़ वंडरलस्ट

नहाकर कपड़े बदलने के बाद हमने कॉटेज के बढ़िया दाल-चावल खाए और फिर मस्त होकर यहाँ के सबसे जाने-माने कैफ़े लोनली प्लैनेट में घुस गये, जहाँ सर्दी से बचने के लिए 2-3 तंदूर लगे थे | लकड़ियाँ जल रही थी, और पास बैठे हिप्पी गाना बजाना कर रहे थे | हम दोनों का साथ में ये पहला अनुभव था तो हम उंगलियों में उंगलियाँ फँसाए बस संगीत सुने जा रहे थे | पास के गद्दे पर कुछ दिल्ली के लड़के-लड़कियाँ भी बैठे थे, जिन्होनें मैडम को जॉइंट पास कर दिया | मैडम ने मेरी तरफ देखा और फिर होठों से लगा लिया | हर कश के साथ हमारी आँखें छोटी होने लगी और कंधे ढीले होते गये | 14 किलोमीटर चढ़ाई की थकान जाने कहाँ गायब हो गयी | इसी बीच मैनें कॉफ़ी मंगवा ली |

फिर हम अपने कॉटेज की ओर निकल गये |

रात को जमकर बारिश हुई, मगर हमारे पास खूब रज़ाईयाँ और एक दूसरे का साथ था |

सुबह यहाँ का फेमस बनाना नुटेला पैन्केक और कॉफ़ी के नाश्ते के बाद हम बैग उठा कर फिर नीचे उतर आए | चढ़ाई हो या उतराई, वक़्त उतना ही लगता है | चढ़ते हुए धीमे कदम रखने होते हैं, और उतरते हुए संभल कर |

बर्शेनी से शाम वाली बस लेकर हम कुल्लू आए और कुल्लू से वोल्वो लेकर वापिस दिल्ली |

दिल्ली आकर पता चला कि मैडम की शौक में दो चीज़ें और बढ़ गयी हैं | एक ट्रेकिंग और दूसरा भंग |

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