
आज आप लोगों से मैं ऐसे व्यक्ति की कहानी साझा करने जा रहा हूँ जिसने आम जन के साथ-साथ हम जैसे कई यायावर को भी सहारा दिया।
एक रात मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ नाईट ऑउट के लिए निकला और हम चित्तरंजन पार्क से घूमते-फ़िरते पैदल ही चिराग़ दिल्ली वाले रास्ते से हौज़ खास पहुँच गए। इतना चल कर हम लोग थक गए और हमें बहुत प्यास लगने लगी। रात में न कोई दुकान खुली थी और न ही हमारे पास पानी था, तभी थोड़ा आगे चल के पंचशील पर कुछ मटके रखे दिखाई दिए और हमने देखा तो उसमें पानी भी था और फ़िर सबने पानी पी कर वहाँ से प्यास बुझाई। फ़िर उसके बाद मैं कभी भी उस रास्ते से गुजराता तो उन मटकों के सहारे अपनी प्यास मिटाता। मैंने ध्यान दिया तो पाया कुछ दूरी पर जगह-जगह पर मटके रखे हैं और ऊपर मटका स्टैण्ड पर लिखा है ‘मटकामैन’ और एक फ़ोन नम्बर भी लिखा है। तभी मटकामैन के बारे में जानने को जिज्ञासु हुआ और फ़िर मैंने उनकी पूरी कहानी जानी।

मटकामैन की कहानी कुछ ऐसी है कि ‘अलग नटराजन’ नामक भारतीय जो विदेश में रह कर इंजीनियर की अच्छी-ख़ासी जॉब कर रहा था, लगभग 30 साल तक लंदन में जॉब कर के वर्ष 2005 में रिटायर होने पर भारत आने का फ़ैसला किया। भारत आने के कुछ समय में ही उन्हें जानलेवा कैंसर हो गया। उनके अन्दर के फाइटर ने इस कैंसर को हरा दिया। कैंसर से जितने के बाद उन्होंने लोगों की सेवा के लिए पहले कैंसर NGO में काम किया फ़िर थोड़ा-बहुत समाज सेवा की।

उन्होंने एक बार देखा कि एक मज़दूर उनके घर के बाहर वॉटर कूलर से पानी भर के ले जा रहा है। उनके पूछने पर उसने बताया कि "मैं जहाँ काम करता हूँ वो लोग पानी नहीं देते इसलिए मैं 2-4 गली छोड़ कर यहाँ पानी लेने आता हूँ।" ये जानने के बाद उन्होंने सोचा एक गरीब मज़दूर रोज़-रोज़ दिल्ली की इतनी चिलचिलाती गर्मी में कैसे पानी ख़रीद पाएगा।

इस विचार के साथ उन्होंने 2011 में कुछ मटके ले कर साउथ दिल्ली की सड़कों पर मटके लगाकर उनमें पीने का पानी भरकर रखना शुरू किया। आज पूरे साउथ दिल्ली में अलग नटराजन द्वारा 100 मटके लगा दिए गए हैं और उनमें वह ख़ुद अपने पैसे और कुछ डोनेशन की मदद से रोज़ सुबह 4 बजे उठ कर पानी भरते हैं। उन्होंने पानी भरने के लिए एक वैन भी मॉडिफाई किया है जिससे 8000 लीटर पानी रोज़ाना भरा जाता है। उनके इस काम को देख कर ‘सौरभ भारद्वाज’ (साउथ दिल्ली तरफ़ के MLA) द्वारा जल बोर्ड से पानी का एक्सेस मिल गया है। पानी के साथ-साथ लोगों तक अच्छा खाना पहुँच सके इसके लिए फ़्री में स्वामी नगर बस स्टॉप के पास अलग नटराज स्वादिष्ट और पौष्टिक ‘चाट’ भी देते हैं।

मटकामैन द्वारा अपना फ़ोन नम्बर मटके के पास लिखने का सबसे बड़ा कारण है कि जब भी मटके में पानी ख़त्म हो जाए तब उन्हें कॉल कर के सूचित कर दिया जाए कि पानी ख़त्म हो गया है जिससे आम जन के पीने के लिए और मटकों में पानी भर सकें। मटकामैन नाम उनको उनकी बेटी द्वारा बेटी के बर्थडे पर 2014 में दिया गया था। जिस नाम से आज वो पूरी दिल्ली में मशहूर हैं। अलग नटराजन अक्सर लोगों को बोलते हैं कि सभी अपने घर के बाहर मटका रखने का प्रयास करें जिससे राह चलते राहिगीरों की इस गर्मी में प्यास बुझ सके। वो वर्षों से इस काम को कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है यह उनकी कोई “पब्लिक सर्विस” नहीं है बल्कि यह तो “पब्लिक रिस्पॉन्सिबिलटि” है! अलग नटराजन कहते हैं- "मैं इस काम को सामाजिक कार्य के तौर पर नहीं करता बल्कि इसलिए करता हूॅं क्योंकि मेरे लिए मानवता ही सबसे पहले है!"

उनके द्वारा लगाए मटकों से दिल्ली की गर्मी से राहत पाने के लिए केवल गरीब मज़दूर ही नहीं हम जैसे राहगीर भी पानी पी कर अपने सफ़र को पूरा कर रहे हैं। अगर आज मटकामैन पानी के मटके नहीं लगाते तो कितने ही लोग अपने सफ़र का वैसा आनन्द नहीं ले पाते जैसा लेना चाहते हैं, ख़ासकर हम जैसे यायावर जो कितनी ही गर्मी में दिन भर किसी नई जगह की तलाश में भटकते ही रहते हैं। ऐसे में पानी की चार बोतल हमेशा साथ रखने और भारी वजन लेकर इधर-उधर भटकने से छुट्टी दिलाई मटकामैन ने। अलग नटराजन उर्फ़ ‘मटकामैन’ को मेरा सलाम।
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