
"*****, ##### कहाँ हो तुम , जाना नहीं है क्या ? $$$$$$ बस जा रही है, दौड़ कर आओ जल्दी|", मैं बहुत लेट हो चुका था | गालियों से मिश्रित आयुष प्रकाश के गुस्से भरे तीव्र स्वरों ने मेरे क़दमों की गति बढ़ा दी थी| मैंने फ़ोन कट किया और दौड़ना शुरू किया| करीब आधा किलोमीटर दौड़ने के बाद मैं बस तक पंहुचा जो कि निर्धारित बस स्टॉप से कुछ आगे निकल चुकी थी |
बस में चढ़ने के बाद ग्रुप के सारे सभ्यजनो ने पहले से कहीं नई और ऊंचे दर्जे की गालियों से मेरा स्वागत किया, जो कि अपेक्षित था | शाम के साढ़े पांच बज रहे थे और हमारी शिलांग यात्रा शुरू हो चुकी थी | हम कुल आठ लोग थे, विशाल विक्रम सिंह, रोहित कुमार, योगेश गंगवार, शिवम तिवारी, सौरभ सिंह, प्रन्नोय विकाश चन्द्र, आयुष प्रकाश और मैं |थोड़ी देर की हलचल के बाद हम सभी दो - दो के ग्रुप में अपनी - अपनी सीट पर थे और फिर शुरू हुआ किस्से - कहानियों का दौर | ये बात - वो बात , वो लड़की , उसकी गर्लफ्रेंड, उसका ब्रेकअप आदि के बीच- बीच में परचून की दुकान से ख़रीदे गए खान - पान का भी आदान -प्रदान चलता रहा | हमारे साथ हमारे तिवारी भैया बैठे थे जो कि थोड़ी देर बाद कुछ निजी समसामयिक घटनाओ की चर्चा के लिए अपने पूर्व रूममेट योगेश के साथ जा बैठे |

पूरे आठ घंटे की यात्रा के बाद हम शिल्लोंग पहुँच चुके थे | बस से उतरकर मैंने घडी की तरफ देखा , रात के २ बजकर ३७ मिनट हो रहे थे | AC बस से निकलने के बाद ठण्ड का आलम ये था कि, कुछ अंग इतने सिकुड़ रहे थे कि उनके न होने के एहसास हो रहा था | हमने झट से अपना शाल निकाल कर ओढ़ लिया | शिल्लोंग की सडको पर इतनी रात को शाल ओढ़ कर चलते हुए हम किसी कच्छा - बनियान गिरोह से कम नहीं लग रहे थे | चूंकि हमने होटल पहले से बुक नहीं किया था, हम सुबह होने तक चलते रहे | अंततः हम सुबह ६ बजे के मशहूर पुलिस बाजार पहुंचे | पुलिस बाजार काफी चहल - पहल वाला इलाका है | इतनी सुबह - सुबह चाय - नाश्ते की बहुत सारी दुकाने सड़कों के किनारे खुल चुकी थी | हममे से कुछ लोगों ने नाश्ता किया और फिर होटल की तलाश में निकले | पुलिस बाजार में होटल की कमी नहीं है | यहाँ आसानी से उचित दाम में होटल मिल जाते हैं | हमने भी एक होटल बुक किया और १-२ घंटे आराम करने के बाद हम सभी तैयार थे, अपने पहले दिन की ट्रिप के लिए |

अब तक के अपने जीवन काल में पहली बार मैंने अंतररास्ट्रीय सीमा देखी | डावकी नदी के बीच में एक काफी बड़ा पत्थर जिस पर एक तरफ INDIA लिखा था, भारत और बांग्लादेश को अलग कर रहा था | उपरोक्त चित्र के अनुसार जिधर बहुत ज्यादा भीड़ दिख रही है वो बंगलादेश है और दूसरी तरफ भारत | बंगलादेशी लोगों की इतनी ताताद देख कर ऐसा लग रहा था, मानों वो सब दिनेश कार्तिक से Nidhas ट्राफी वापस लेने आये थे | मगर हमारे जवान भी कम नही थे | वो बार बार भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास कर रहे थे और हमारे जवान वापस उन्हें भगा रहे थे | अच्छा, ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सीमा हो तो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार काफी सहज हो जाता है | जैसे कि हम वहां खड़े होकर नाव का इन्तजार ही कर रहे थे कि एक आदमी अपने हाथ में कुछ खाने का सामान लेकर हमारी तरफ आया | " ये लीजिये साहब बांग्लादेश का स्पेशल आइटम, उधर देखिये हमारी दुकान बांग्लादेश में है", उस आदमी ने हमसे दस कदम की दूरी पर बांग्लादेशी सीमा में लगे अपने स्टाल की तरफ इशारा करते हुए बोला | इसी बीच हमारे एक जवान की नजर उसपर पड़ी और वो वापस चला गया | उसके बाद हमने काफी देर तक नौका - विहार का आनंद उठाया |






