राजस्थान का अमरनाथ: चारों ओर खूबसूरत हरियाली से घिरा बेहद पवित्र और प्राचीन स्थान!

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राजस्थान अपने आप में एक अनोखा प्रदेश है ये बात तो आप सभी जानते हैं। यहाँ की संस्कृति, वीरता की कहानियां,किले, महल, रेगिस्तान और ना जाने कितनी ही चीजें हैं जिनके बारे में बाते करना अगर शुरू करो तो बात कभी ख़त्म ही नहीं होगी। लेकिन इन्हीं के साथ राजस्थान में ऐसे कई प्राचीन और धार्मिक स्थान भी हैं जिनके लिए आम तौर पर राजस्थान इतना लोकप्रिय नहीं है। उनमें से ही एक ऐसे पवित्र स्थान के बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं जो महादेव का एकमात्र ऐसा मंदिर बताया जाता है जिसे खुद भगवान् परशुराम ने बनाया था और वहीं घोर तपस्या भी की थी। साथ ही इस मंदिर के चारों ओर घनी हरियाली की चादर ओढ़े अरावली पर्वतमालाएं हैं जो इस स्थान को एक शानदार पर्यटन स्थल भी बनाती हैं। तो चलिए बताते हैं आपको इस अद्भुत स्थान के बारे में पूरी जानकारी...

परशुराम महादेव मंदिर

राजस्थान में पाली जिले में स्थित परशुराम महादेव मंदिर उदयपुर से करीब 100 किलोमीटर और कुम्भलगढ़ से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर स्थित है। अरावली पर्वतमालाओं के बीच एक गुफा में मौजूद है महादेव को समर्पित एक बेहद प्राचीन मंदिर जिसे स्वयं भगवान् परशुराम ने बनाया था। समुद्रतल से करीब 4000 फ़ीट की ऊंचाई पर यह गुफा स्थित है और गुफा में ऊपर देखने पर एक गाय के थन जैसी आकृति दिखती है। शिवलिंग के ऊपर जो गौमुख मौजूद है वहीं से निरंतर प्राकृतिक जलधारा के द्वारा शिवलिंग का जलाभिषेक होता रहता है जिसे देखना वास्तव में अद्भुत लगता है। बताया जाता है की प्राचीन समय में परशुराम मातृहत्या के दोष के निवारण के लिए इस गुफा से कुछ दुरी पर स्थित मातृकुंडिया नाम के एक स्थान पर मातृकुंडिया नदी में स्नान करके फिर इस स्थान तक गुफा के रास्ते से ही आये थे। लेकिन आज के समय में इस गुफा में सिर्फ 5-7 मीटर तक ही जाया जा सकता है। इसके अलावा यहाँ एक गणेश जी का भी प्राचीन मंदिर है और गुफा से नीचे की ओर नौ पवित्र कुंड भी बने हुए है जो हमेशा पानी से भरे रहते हैं।

मंदिर से जुडी मान्यताएं

बेहद प्राचीन व् प्राकृतिक पवित्र स्थान के तौर पर जाना जाने वाले परशुराम मंदिर का इतिहास और इससे जुडी कई मान्यताएं भी बताई जाती हैं। जैसा कि बताया जाता है कि विष्णु जी के छठे अवतार भगवान् परशुराम गुफा के रास्ते से यहाँ पहुंचे थे और उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या करके अनेक अस्त्रों को प्राप्त किया था। और उन्होंने ही अपने फरसे से वार करके इसे गुफा का निर्माण किया था जहाँ आज यह महादेव का मंदिर मौजूद है।

ऐसा बताया जाता है कि मंदिर में जो शिवलिंग है उसमें एक छिद्र है जिसमें सैंकड़ो घड़े पानी के डालने पर भी वो छिद्र नहीं भरता लेकिन अगर वहीं इसमें दूध डाला जाता है तो बिलकुल भी दूध इसमें नहीं समाता। इसके पीछे का राज़ आज तक कोई नहीं समझ पाया।

इसके अलावा एक पौराणिक मान्यता के अनुसार परशुराम जी ने कर्ण को शस्त्र शिक्षा इसी स्थान पर दी थी। साथ ही गुफा की दीवार पर गौर से देखने पर एक राक्षस कि छवि दिखाई देती है जिसके लिए कहा जाता है की इस राक्षस का वध स्वयं भगवान् परशुराम ने किया था।

इसके अलावा भी एक मान्यता इस मंदिर से जुडी है जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम के कपट सिर्फ तभी खोल सकता है जब उसने परशुराम महादेव मंदिर में दर्शन किये हों।

और इन्हीं सब मान्यताओं के साथ यह मंदिर राजस्थान का अमरनाथ भी कहलाया जाता है।

परशुराम महादेव मंदिर में मेले का आयोजन

परशुराम महादेव मंदिर में सावन महीने में भक्तो का आना हमेशा बढ़ जाता है। चूँकि सावन में महादेव के दर्शनों का अपना एक अलग महत्त्व है और सावन के सोमवार पर तो यहाँ भक्तो की लम्बी-लम्बी कतारें आपको देखने को मिल जाएँगी। इसके अलावा इस समय चारों ओर की घनी हरियाली से ढकी पहाड़ियों के बीच वैसे भी यहाँ के नज़ारे काफी शानदार लगते हैं। अगर मेले की बात करें तो हर साल सावन महीने में शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सप्तमी को यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है जिसमें दूर-दूर से लाखों लोग यहाँ महादेव के दर्शनों के लिए आते हैं। इस दौरान देश के कई हिस्सों के कलाकार अपनी प्रस्तुतियां भी यहाँ पेश करते हैं।

जाने का बेस्ट समय

वैसे तो परशुराम महादेव मंदिर में आप कभी भी दर्शनों के लिए जा सकते हैं। लेकिन जैसा की हमने बताया की सावन महीने में दर्शनों का आना एक अलग महत्त्व है और इसके साथ जब आप मानसून के समय यहाँ जाते हैं तो अरावली पर्वतमालाओं को ढके बादलों के अद्भुत नज़ारे और घनी हरियाली के बीच यह स्थान किसी लोकप्रिय हिल स्टेशन से कम बिलकुल नहीं लगता। इसलिए अगर आप बारिश के मौसम में यहाँ जायेंगे तो ट्रैकिंग का भी बेहद शानदार अनुभव आपकी यादों में जुड़ जायेगा। कुम्भलगढ़ के पास स्थित यह जगह फोटोग्राफी के लिए भी खास तौर पर मानसून में एक परफेक्ट स्थान के तौर पर जानी जाती है। साथ ही अगर आप भीड़ से बचना चाहते हैं तो सावन महीने के बाद भी मानसून में ही यहाँ जा सकते हैं।

कैसे पहुंचे?

हवाई मार्ग द्वारा

अगर आप हवाई मार्ग से यहाँ पहुंचना चाहते हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर एयरपोर्ट है। उदयपुर एयरपोर्ट पहुंचकर करीब 110 किलोमीटर दूर परशुराम महादेव मंदिर के लिए आप टैक्सी वगैरह ले सकते हैं। आपको बता दें की आप कुम्भलगढ़ किले की ट्रिप के साथ ही इस मंदिर की यात्रा कर सकते हैं क्योंकि कुम्भलगढ़ किले से परशुराम महादेव मंदिर सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी पर है।

रेल मार्ग द्वारा

रेल मार्ग से यहाँ पहुंचना भी बेहद आसान है। पाली जिले में ही स्थित रानी स्टेशन और फालना स्टेशन देश के कई बड़े शहरों से अच्छी तरह से रेल नेटवर्क द्वारा जुड़े हुए हैं। आप इनमे से किसी भी स्टेशन पर उतरकर टैक्सी वगैरह के माध्यम से परशुराम महादेव मंदिर तक पहुँच सकते हैं। आपको बता दें कि रानी और फालना दोनों ही स्टेशन से इस मंदिर की दूरी करीब 40 किलोमीटर है।

सड़क मार्ग द्वारा

जैसा कि हमने आपको बताया कि कुम्भलगढ़ से यह मंदिर सिर्फ 10 किलोमीटर दूर पड़ता है इसीलिए आप कुम्भलगढ़ यात्रा के दौरान परशुराम महादेव मंदिर भी जा सकते हैं। इसके अलावा उदयपुर से यह मंदिर करीब 100 किलोमीटर दूर है और वहीं जयपुर से यह करीब 350 किलोमीटर दूर स्थित है। सडकों की स्थिति काफी अच्छी है जिससे आप आसानी से सड़क मार्ग के द्वारा यहाँ पहुँच सकते हैं।

मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहाड़ी के नीचे जब आप पहुँच जाते हैं तो वहां से पैदल चलकर और करीब 500 सीढ़ियों द्वारा आप इस पवित्र गुफा तक पहुँच सकते हैं।

उदयपुर से परशुराम महादेव मंदिर

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तो अगर आप राजस्थान यात्रा की प्लानिंग कर रहे हैं और खास तौर पर आप उदयपुर, कुम्भलगढ़ के आस पास घूमने जा रहे हैं तो इस अद्भुत और पवित्र स्थान पर जाना बिलकुल भी मिस न करें। इससे जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने इस आर्टिकल के माध्यम से आपसे साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको हमारी ये कोशिश अच्छी लगी तो इस आर्टिकल को प्लीज लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी अनेक जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं।

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