हीरा तेरी सराय फिर से गुलजार हो गयी रे
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रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ का एक पात्र अपनी तरह के लाखों लोगों की सोच को प्रदर्शित करते हुए कहता है —“लङकी की जात बिना दवा दारु की ठीक हो जाती है “— तो सवाल उठता है क्या दुआ से ही बीमारी ठीक हो जायेगी ??? हां , महुआ धाम की भक्तों की मानें तो यही सच है ।यह दृश्य है बिहार के औरंगाबाद के कुटुम्बा में स्थित महुआ धाम का । यदि आप औरंगाबाद जिला में पहुंचे हुए हैं तो भूतों से आपकी मुलाकात हो सकती है ! महुआ धाम गत बीस वर्षों से आसपास के कुछ जिलों में आस्था के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। कल तक हीरा सराय के रूप में गुमनाम यह जगह आज प्रसिद्ध है तो कारण है भूत प्रेत भगाने वाले दैवीय तत्व का हीरा सराय में डेरा डाल लेना । अब इससे हीरा सराय की ‘हीरा’ को तो रश्क जरूर हो रहा होगा कि उसके जीते जी जिसे उपेक्षा से देखा गया आज वह भीङ बटोर रहा है और पैसा भी । वैसे आज यहाँ आने वालों की जमात में कुछ ही तमाशबीन होते हैं । ज्यादातर वैसे लोग हैं जो भूत-प्रेतों की पकङ से कराह रहे हैं और जिनका जीवन पूरे परिवार के लिए एक बोझ बन गया है और इस बोझ को हल्का बनाने में लगे दुकानदारों की आबादी भी हरेक साल बढती जा रही है। यहाँ वैसे तो साल भर लोगों का आना जाना लगा रहता है लेकिन कुछ खास अवसरों (नवरात्र) पर भीङ देखते ही बनती है।
यहाँ एक दुर्गा मंदिर है जो मुख्य केन्द्र है लेकिन एक मजार और कुछ छोटे -छोटे मंदिर भी दैवीय कृपा पाने में कम महत्वपूर्ण नहीं माने जाते । मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बमुश्किल 15 फीट चौङा है और दोनों ओर फुटपाथी दुकानदारों की लम्बी कतार जहाँ महिलाएं श्रृंगार की वस्तुएं व बर्तन खरीदते देखी जा सकती हैं । इसी रास्ते पर बायीं तरफ एक पेङ को पकङ झूमते कुछ लोग दिखाई पङ जाते हैं तो एक मजार पर मुर्गा हाथ में लिए भक्त। एक छोटे लाल रंग के मंदिर के चबूतरे पर भक्त गण हाथ जोङे दिख जायेंगे और कुछ झूमते हुए भी। झूमना एक खास स्टाइल में होता है जिसमें शरीर के ऊपर वाला हिस्सा क्लॉकवाइज घूमता दिखता है। जिन्हें चबूतरे पर जगह नहीं मिलता वह इस पास के मकान के दरवाजे पर बैठकर अपनी ‘क्रिया’ करते हैं।
मुख्य मंदिर के द्वार पर भारी भीङ जमा होती है जो माता के दर्शन के लिए लालायित नजर आते हैं। यहाँ पर धोती पहने अर्धनग्न पुरुष भक्त भी खूब दिखाई पङते हैं । दुर्गा मंदिर के बगल से जो रास्ता गुजरती है वहाँ खेत के कोने पर एक बहुत ही छोटा सा तालाब है जिसमें बदबूदार कीचङ के बीच कुछ महिलाएं लोटती दिखाई पङती हैं जिनके ऊपर सवार भूत को निकालने के लिए किनारे खङे ओझा सवाल जवाब करते हैं कि कौन है तू, काहे इहां आइल है , का चाहती है , छोङकर भाग एकर देह इत्यादि। यहीं पर कुछ महिला जमीन पर लोटती, घुलटती , छटपटाती और चिल्लाती दिखती हैं और इनके अस्त व्यस्त कपङों को ठीक करने का काम में कुछ महिलाएं भी लगी होती हैं।
सारा नजारा विचित्रता से भरा दिखता है। जो लोग यहाँ आते हैं उनके लिए सारी कवायदें और परेशानियां भूत-प्रेत को भगाने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं और यह मान कर चला जाता है कि भूत साधारण उपायों से थोङे साथ छोङेंगे !! यह कर्मकांड एक दिन का भी हो सकता है और महीनों का भी। और जब महीना दिन तक ओझाई करवाना हो तो महुआ धाम रूकना पङता है और फरियादी वहाँ रुकते भी हैं । इस देहात में होटल मिलने से रहा और जितने लोग जमा होते हैं उनको स्थानीय लोगों के घरों में किराये पर टिकाया भी नहीं जा सकता । ऐसे में ठहरने के लिए छप्प रनुमा मङईयों का उपाय ढूंढ निकाला गया है। समीप के खेतों में और पास गुजरती नहर के मेंङ पर छप्पर लगा दिये गये हैं जिनको देखकर यही लगता है कि इंसान का ऐसा आशियाना !!!! ऊंचाई इतनी कम की कमर कमान बन जाये और यहाँ किसी तरह रातें काटी जा सकती हैं । शौच क्रिया खुले मैदान और सङक किनारे जिसकी दुर्गंध चारों ओर पसरी होती हैं। नहाना नहर के गंदे पानी में और कुछ लोगों का चापाकलों पर ही हो पाता है । इधर हम सोचते रहें कि खेत किनारे ढिबरी की रोशनी में इंसानी जानवरों और सांपों से बचाव के लिए कौन- से उपाय किये जाते होंगे । यहाँ ऐसा सोचने का कोई मतलब नहीं कि लोग कैसी कीमत स्वस्थ होने की आशा में चुकाते होंगे !!! यहाँ घुमते हुए एक चीज शायद साफ महसूस की जा सकती है कि सारा आचार-व्यवहारमनोवैज्ञानिक है । वैज्ञानिक धारणा यह है कि लोग इस तरह से इसलिए झूमते हैं कि बाकी लोग भी झूम रहे होते हैं और उन्हें देखकर दिमाग शरीर को प्रेरित करता है कि वह भी यह कर सकता है । और सब जानते हैं कि दिमाग पूरे शरीर का नियंत्रक होता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसी वर्ष चेतावनी जारी की है कि बहुत जल्द ही अवसाद विश्व की दूसरी बङी बीमारी बनने जा रही है और भारत में भी यह माहमारी जैसा आकार ले रहा है । हाल ही के वर्षों में व्यक्ति का जीवन जिस तरह के कृत्रिम दवाब का शिकार हुआ है उसने जीवन शैली के स्वाभाविक चाल को उलट-पुलट दिया है क्योंकि जीवन में इच्छा और उपलब्धि के बीच फासला बढता जा रहा है । दिमाग के तारों को स्वस्थ सिग्नल देने वाले न्यूरोकेमिकल्स इस तरह के दवाब में अपनी प्रतिक्रिया स्वाभाविक ढंग से दर्ज नह़ी करा पा रहे हैं । ऐसा इसलिए कि सारा समाज उपभोक्तावाद और दिखावापन की संङसी से ऐसे पकङ लिया गया है कि आदमी नकलीपन को ही जीवन का काम्य मान बैठा है ।तनाव, अनिंद्रा, अवसाद का जन्म इसी से हो रहा है और समाज इस तरह की समस्या से ग्रसित व्यक्ति को बीमार मानने को तैयार ही नहीं है । मानसिक स्वास्थ्य को लेकर वह जागरुक नहीं हुआ है और इसी जानकारी के अभाव में वह बीमार व्यक्ति को बुरी ताकतों का शिकार मान लेता है । आसमानी साया के इसी सोच से डायन-ओझा-भूत-प्रेत का अस्तित्व प्राय: कायम हो जाता है ।…. दुर्गा माता के प्रति धार्मिक आस्था अपनी जगह है लेकिन महुआ धाम में दोनों नवरात्र (चैत्र और शारदीय)के समय खास तरह का मनोवैज्ञानिक परिवेश उपस्थित दिखाई पङता है जहाँ उपस्थित सारे ‘फरियादी’ वेष-वूषा से निम्न तबके से संबंद्ध दिखाई पङते हैं और आश्चर्य यह भी कि उनमें से अधिकतर भोजपुरी क्षेत्र के होते हैं। भोजपुर के लोग ज्यादा अंधविश्वासी हैं या यह कहा जाए कि शायद भूतों को भोजपुर ही रास आ रहा है ! कुछ भी हो ‘हीरा’ तेरी सराय फिर से गुलजार हो गयी रे ……।
तस्वीरें :- अमित लोकप्रिय, चंद्रशेखर साहू
कैसे पहुंचे :- नजदीकी रेलवे स्टेशन नवीनगर रोड और जपला है । गया, डेहरी आन सोन, अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन उतर कर भी सङक मार्ग के जरिए कुटुम्बा आया जा सकता है । सङक बढिया है । नेशनल हाइवे से जुङा हुआ है ।
कहां ठहरें :- अम्बा के विमला विवाह मंडप, चौधरी विवाह मंडप , पी भगत अतिथि गृह में ।
नजदीकी घूमने योग्य दूसरे केंद्र :- अम्बा का सतबहिनी मंदिर, देव और उमगा का सूर्य मंदिर, परता का कल्पवृक्ष, पवई का झुनझुना पहाङ ।
© अमित लोकप्रिय
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