बरसात में भीगा समुद्र तट

Tripoto
27th Jul 2018
Photo of बरसात में भीगा समुद्र तट by ambrish kumar
Photo of बरसात में भीगा समुद्र तट 1/1 by ambrish kumar

अंबरीश कुमार

आगे सड़क खत्म हो गई थी .अपनी बस यहीं रुक गई .बालू वाला एक रास्ता दो बड़ी नावों के बीच से समुंद्र तट को जा रहा था .दूसरा पथरीला रास्ता कच्ची सड़क के रूप में करीब एक फर्लांग दूर एक किले में बने लाइट हाउस की तरफ जा रहा था .हम लाइट हाउस की तरफ जाने की बजाय बड़ी नाव के पास ही रुक गए . सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के नीचे बहते अरब सागर के एक कोने में हम खड़े थे .यह कोंकण के रत्नागिरी जिले के दापोली तालुका का ग्राम पंचायत हरणे है .नाव के सामने मराठी में ग्राम पंचायत हरणे का एक बोर्ड लगा हुआ था . यह मछुवारों का गांव है .जहां इस अंचल का बहुत पुराना बंदरगाह है .लाइट हाउस से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितना पुराना है .मानसून की वजह से मछुवारे अभी समुंद्र में नहीं जा रहे थे .छोटी नाव से कुछ मछुवारे जरुर निकलते दिखे .जो दो पहियों वाले स्केटनुमा किसी जुगाड़ पर अपनी नाव चढ़ा कर समुंद्र में ढकेल कर ले जा रहे थे .यह दृश्य अपने लिए नया नहीं था .कालीकट और दमन के समुंद्र तट पर देख चुका था .इस बीच अचानक आई बरसात से बचने के लिए बस में चढ़ गया और ड्राइवर से बात करने लगा .वह हमे जिस गांव के बीच से लाया था उसके संकरे रास्ते में भी छोटी से मछली बाजार पड़ी .बांगडा से लेकर मझोले आकार का झींगा बिक रहा था .मछलियों की गंध चारो तरफ फैली हुई थी .हम कल देर रात दापोली पहुंचे थे .पर दापोली बंद की वजह से आसपास के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को बदलना पड़ा और मछुवारों के इस गांव में बने बंदरगाह के साथ शिवाजी का किला देखने इस तरफ आ गए .यह अपने रिसार्ट से करीब दस किलोमीटर दूर था .

हमने समुंद्र की कई यात्रा की और समुंद्र के तट पर कई बार ठहरना हुआ .लक्ष्यद्वीप ,कोवलम ,दमन ,दीव ,कन्याकुमारी ,महाबलीपुरम ,विशाखापत्तनम से लेकर गोवा के बहुत से तट पर .पर लक्ष्यद्वीप के अगाती और बंगरम समुंद्र तट के बाद यह पहला समुंद्र तट मिला जो वीरान था .हम लोग रात में करीब ग्यारह बजे दापोली के इस तट पर पहुंचे थे .जिस सागर हिल रिसार्ट में जाना था वह सड़क के दाईं तरफ था और सड़क के दूसरी तरफ अरब सागर .कमरे की बालकनी की तरफ जो दीवार थी वह शीशे की थी ,दरवाजा छोड़कर .कमरे में जाते ही सामने अरब सागर की लहरे दौडती हुई आती दिख रही थी . बरसात हो चुकी थी और हवा में ठंढ भी थी . तटीय इलाकों में उमस ज्यादा होती है इसलिए इंतजाम में लगे रवींद्र से मैंने एक एसी कमरे के लिए कहा था .कमरे तो सभी एसी वाले थे पर वे जून से सितंबर तक उसे बंद कर देते है .खिड़की खोलते ही ठंढी हवा का झोंका आया तो लगा इधर फिलहाल एसी की जरुरत ही नहीं है .तबतक खाने का बुलावा आ गया .रात के बारह बज रहे थे .साल ,नारियल ,सुपारी ,आम आदि के घने जंगल से होते हुए आये थे .पहाड़ी और घुमावदार रास्ता था .थकावट महसूस हो रही थी .गर्म पानी से नहाने के बाद खाने के लिए ऊपर लगी मेज कुर्सियों के पास पहुंचे तो लगा किसी जहाज के डेक पर बैठे हैं .सामने सागर और किनारे पर नारियल के लहराते पेड़ .हल लोग कुल पंद्रह लोग थे .शिक्षक ,लेखक ,एक्टिविस्ट ,फोटोग्राफर और यायावर .रेलवे के एक आला अफसर भी थे तो पत्रकार भी .ज्यादातर से परिचय भी रास्ते में या फिर खाने की मेज पर हुआ .यह आपसदारियां का वह समूह था जो मौसम बदलने पर देश के विभिन्न हिस्सों में किसी एक जगह का चयन कर मिलता है .मकसद है देश के अलग अलग अंचल में गांव ,आदिवासी समाज के बीच जाना और उन्हें जानना समझना .ताकि किसी रचनाकार को अपने रचनाकर्म में मदद मिले .इसके सूत्रधार हैं लेखक ,यायावर सतीश जायसवाल .वे हर कार्यक्रम की व्यवस्था किसी स्थानीय मित्र को देते हैं . अमूमन वे गांव कस्बे /डाक बंगले में रुकने की सस्ती व्यवस्था करते हैं .पर इस जगह तो गांव ही रिसार्ट में बदल गया था और आफ सीजन डिस्काउंट के बाद धर्मशाला वाले किराए में ही यह कमरे मिल गए थे .गांव के सरपंच सचिन जब दूसरे दिन आए तो बताया कि यह दापोली का पहला रिसार्ट है जो नब्बे के दशक में बना .ऐसी लोकेशन किसी और की नहीं है .दूसरे दिन नाश्ते के बाद जब समुंद्र किनारे किनारे गांव की तरफ गए तो बदलता हुआ दापोली नजर आया .दरअसल गांव पीछे चला गया था और होटल रिसार्ट आगे हो गए थे .यह मछुवारों का गांव रहा है जिन्होंने बाद में सैलानियों की बढती आवाजाही के बाद अपने घर पीछे कर दिए और होटल रिसार्ट आगे बना दिए .इससे आमदनी का नया जरिया मिला .हर्ले बंदरगाह कुछ किलोमीटर दूर ही है जहां शिवाजी के दो किलों के खंडहर अभी भी मौजूद हैं .शिवाजी का नाम लेने वाली सरकार ने इन किलों को तो बदहाल कर ही रखा है साथ ही उधर जाने वाली सड़क ऐसी बना रखी है कि ज्यादा लोग जाने ही न पाएं .खैर यह दापोली का वर्षावन जैसा अंचल है .बरसात होती है तो जमकर होती है .कई दिन तक होती रहती है .ज्यादातर घरों और होटल रिसार्ट में जगह जगह जमी काई से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है .बरसात जमकर होती है इसलिए हरियाली भी देखने वाली होती है .कई जगहों पर दूर तक फैली हरी घास को देखकर किसी बड़े चरागाह का आभास होता है . हम लोग आसपास के कई गांव में गए .गांव के लोगों से बात हुई और उन्ही के घर बना भोजन किया .यह आपसदारियां कार्यक्रम की परिपाटी में बदल रहा है .जिस भी गांव में जाएं वहां के लोगों का बनाया स्थानीय भोजन करें .उन्हें जाने समझे .उनकी संस्कृति को समझे और उनके खानपान का स्वाद भी लें .दिन में भी हम सभी ने कोंकड़ी थाली मंगवाई और स्वाद लिया था .दापोली के डा बाला साहेब सांवत कोंकड़ कृषि विद्यापीठ से लौटते हुए .भोजन के बाद हापूस आम की सरकारी नर्सरी में गए तो साथ आई मृदुला ने कुछ पौधे लिए .उन्हें देख मैंने भी हापुस आम का एक पौधा ले लिया .बाद में उसे पैक कराने के लिए स्थानीय बाजार छान डाला पर कुछ नहीं मिला .वजह मुंबई से लखनऊ की उड़ान में उसे ले जाने देंगे या नहीं यह संशय था .खैर मुंबई में सीएनबीसी के प्रबंध संपादक और अपने बचपन के साथी आलोक जोशी ने यह समस्या सुलझा दी और एक विदेशी लंबा डिब्बा दिया जिसमे यह पौधा डाल कर लखनऊ ले गए और अपने घर पर लगा भी दिया .

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