सोने का शहर :भारत के इकलौते जीवित किले का आँखों देखा वर्णन

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इस समय आप घूमने जा रहे हैं दुनिया के 17 वे सबसे बड़े मरुस्थल (desert) मे स्थित राजस्थान के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के एक विश्वप्रसिद्ध शहर मे। शहर से कुछ किलोमीटर दूर से ही आपको शहर के बीच स्थित एक पहाड़ी पर चमकता हुआ "सोनार किला " दिखाई दे रहा हैं। जैसे ही थोड़ा सा आप शहर के अंदर प्रवेश हुए आपको पता लग गया कि क्यों इसे 'गोल्डन सिटी' बुलाते हैं क्युकि आपको हर एक ईमारत गोल्डन बलुआ पत्थरो से निर्मित दिखाई दे रही है। पर आप तो रेगिस्तान ढूंढ रहे हैं वो समुद्र से रेत के टीले।

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आपने किसी से पूछा कि भाई ये असली वाला रेगिस्तान कहा मिलेगा एकदम रेत ही रेत से भरपूर। क्युकि जैसलमेर के रास्ते मे तो ऐसे टीले तो थे ही नहीं हालाँकि रेत तो थी पर उनके साथ बबुल की झाडिया काफी थी तो वो फीलिंग नहीं आयी। आपको जवाब मिला कि भाई उसके लिए आपको जाना होगा यहां से 40 -45 किमी दूर सम गांव में।

खैर , आपको भूख लग रही थी तो आप एक अच्छे से रेस्टोरेंट मे गए। राजस्थान की दाल बाटी तो आपने पहले भी कई बार खाई हुई थी सो इस बार आपने 'केर- सांगरी' की सब्जी ,'गट्टे की सब्जी ' का स्वाद लेना चाहा। और ये खा कर आपको पता लगा कि आपका खाने के मामले मे डिसीजन सही था।अब आपने गंतव्य स्थान से आपकी एडवांस्ड मे बुक की हुई किराए की 'बुलेट ' ले ली और पुरे जैसलमेर को बाइक से ही घूमने का प्लान बना लिया। क्युकी यहा का शहरी इलाका ज्यादा फैला हुआ नहीं हैं और शहर से दूर के स्थान रोड ट्रिप के लिए परफेक्ट डेस्टिनेशन बताये गए हैं। अब आपने सोचा काश आप जोधपुर से ही बुलेट लेकर यहां आ जाते क्योकि दोनों शहरो के बीच का रोड काफी अच्छा था और दूरी भी करीब 280 किमी ही थी

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अब आप किले की तरफ जाने का मानस बना लेते हैं फिर वहा से फ्री हो कर आपको शॉपिंग करनी हैं। किले का रास्ता आप पूछते हैं तो पाते हैं कि इस किले पर जाने का रास्ता सबसे सीधा हैं कोई भी ज्यादा लेफ्ट राइट लेने की आवश्यकता नहीं हैं। आप किले पर जाने के लिए जैसे जैसे शहर के एकदम अंदर की ओर बढ़ते हैं आपको हवेलिया ,ऊंट ,पगड़ी पहने हुए लोग ,रावणहत्था बजाते हुए कलाकार ,रंग-बिरंगे सामानो से भरी दुकाने आपको अब वाकई राजस्थान की फीलिंग देने लग गयी हैं। जनवरी महीना हैं ,ठंड सुबह सुबह ही थी अब दोपहर मे आप अपना कोट उतार कर बैग मे रख लेते हैं। अब आपको लगा कि आपको सही जानकारी मिली हुई थी कि नवरात्रा के बाद से मार्च तक का महीना जैसलमेर घूमने के लिए सबसे अनुकूल समय हैं।

अब जगह जगह से गुम्बदाकार रूप लिए किले की लम्बी दीवार आपके लेफ्ट साइड ऊपर की ओर काफी समीप से दिखाई देने लगी। मुख्य दरवाजा करीब 300 मीटर आगे हैं यही से कार पार्किंग भी स्टार्ट हो गयी है जो कि रोड के किनारे किनारे ही लेफ्ट साइड मे हैं।आप मुख्य दरवाजे पर आ गये हैं जिसके आस पास जगह जगह ठंडी लस्सी ,संतरे के जूस और भेलपुरी बेच रहे हाथ-ठेले खड़े दिख रहे हैं। मुख्य द्वार करीब 40 फ़ीट ऊँचे खड़े दो गुंबदों के बीच से बना हैं। क्युकी ये एक जीवित किला हैं ,मतलब ऊपर काफी आबादी परमानेंट रहती हैं तो आप अपनी बाइक लेके ऊपर जा सकते हैं।ऊपर करीब 4000 लोगो की आबादी रहती हैं। अंदर घुसते ही आप पहुंचते हैं 'माणिक चौक' मे , एक ओर पार्किंग जिसमे कई ऑटो पड़े है और सर उठा के देखो को सामने गोल्डन रंग लिए विशाल सा 'सोनार किला ' आपको दीखता हैं। इसी पार्किंग के आसपास काफी दुकाने जिसमे कई प्रकार के कल्चरल सामान बिक रहा हैं। कई आदमी अब आपको घेरने लगे हैं -"गाइड करलो ","दो घंटे मे घुमा दूंगा ,केवल 100 रूपये दे देना " आदि आदि।

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आप पाते है एक लोकल कलाकार राजस्थानी पगड़ी और वेशभूषा मे दरवाजे के पास छाया मे बैठकर "पधारो म्हारे देश " गा रहा है उसके पास एक कलाकार ढोलक और एक रावणहत्था बजा रहा हैं। उनके सामने बिछी चादर मे कुछ 200 300 रुपये पड़े है कुछ सिक्के भी हैं। पांच छह विदेशी पर्यटक इनको ध्यान से सुनते हुए उनका वीडियो बना रहे हैं। उनके सामने कुछ कठपुतलिओं का खेल भी चल रहा हैं। अचानक किले के ऊपर की ओर से सेकड़ो कबूतर एक साथ उड़ते हैं और आप किले के साथ उनका एक अच्छा फोटो निकाल लेते हैं।

अब आप अपनी गाडी निचे ही एक तरफ खड़ी कर पैदल ही किला घूमने का सोचते हैं और एक गाइड ले लेते हैं। अन्य पर्यटकों के साथ साथ आप भी अंदर एक ओर पहले जैसे ही बने एक और प्रवेश द्वार से आगे बढ़ते हैं। किला ऊंचाई पर हैं तो थोड़ी चढ़ाई भी आपको करनी पड़ती हैं। गाइड आपको बताता हैं कि-

"इस किले मे कुल 4 पोल (दरवाजे ) है जो एक के बाद एक कुछ दूरी पर आते हैं ,इनके नाम है -अक्षय पोल ,सूरज पोल ,गणेश पोल और हवा पोल। किले मे आने जाने का केवल एक ये ही रास्ता हैं।यह किला यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट हैं। "

" किला करीब 865 साल पुराना हैं एवं त्रिकुटा पर्वत पर बनाया गया था। हिंदी मे पर्वत को मेरु भी बोला जाता हैं। इस किले की नींव महाराणा जेसल ने 1156 मे रखी थी तो किले का नाम जेसल +मेरु यानी जैसलमेर हो गया।सूर्य की किरणे पड़ने पर यह किला स्वर्ण की तरह चमकता हैं इसीलिए इसे सोनार किला भी बोला जाता हैं। "

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ऊपर पहुंचते ही आप पहुंचते है एक छोटे से खुले प्रांगण मे। इस प्रांगण को बोलते है -दशहरा चौक ,जो कि यहा का केंद्र एवं सबसे व्यस्ततम क्षेत्र हैं । यह चारो तरफ से खूबसूरत गोल्डन इमारतों से तो घिरा हुआ हैं लेकिन प्रांगण पूरा बाइक्स,ठेले वाले और पर्यटकों से फुल भरा पड़ा हैं । इन गोल्डन इमारतों मे कुछ हवेलियां हैं तो कुछ मंदिर हैं ,जिनकी नक्काशी आपकी आँखे बंद ना होने दे रही हैं। कुछ लोग राजस्थानी वेशभूषा मे एक तरफ खड़े खड़े आपस मे गप्पे मार रहे हैं। आप पाते हैं कि यहां से कई छोटी छोटी संकरी गलिया भी अलग अलग तरफ जा रही हैं। ये गलिया वैसी ही हैं जैसी की PK या नन्हे जैसलमेर जैसी फिल्मों मे आपने देखी हैं।

गाइड के हिसाब से किले पर घूमने की जगह जो है वो है -

1. कैनन (तोप ) पॉइंट

2. किंग एंड क़्वीन पैलेस म्युज़ियम

3. जैन मंदिरो का समूह

4. बारी हवेली

5. शॉपिंग के लिए अच्छी दुकाने।

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यह किला ऊपर पहुंचने के बाद ऐसे लगता हैं जैसे आप किसी शहर मे घूम रहे है किले मे नहीं।ऊपर आपको गेस्ट हाउस ,खाना पीना ,होमस्टे हर एक चीज मिल जाएगी। इस दशहरा मैदान के पास मे ही किंग एंड क़्वीन प्लेसेस हैं जो कि एक तरह से म्युज़ियम की तरह बने हुए हैं। इनका टिकट करीब 50-50 रुपये ही हैं। इनकी नक्काशी देखने लायक हैं एवं ये बहुमंजिला पैलेस अलग अलग मंजिल पर अलग अलग तरह के प्राचीन औजारों ,हथियारों ,तस्वीरों ,वाद्य यंत्रो , प्राचीन बर्तनो ,कपड़ो के संग्रह को लिए हुए हैं।

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यहा से करीब आधे घंटे मे फ्री होकर ही आप पास की ही संकरी गली से पहुँचते है -कैनन पॉइंट। यहा ऐसे दो कैनन पॉइंट हैं। यह जगह इस किले की सबसे खूबसूरत जगहों मे से एक हैं। यहाँ आप पाते हैं काफी भीड़ ,जो कि तोप के साथ फोटो लेने में व्यस्त हैं। यहाँ से लगभग पूरा शहर का अच्छा नजारा दिखाई देता है ,जिसको देख कर आपको ये खुद ही समझ में आ जाता हैं कि इस शहर को स्वर्ण नगरी क्यों बोला जाता हैं।

अब यहाँ से कुछ चार पांच सकरी परन्तु खूबसूरत गलियों से होते हुए आप पहुंचते हैं 'बारी हवेली'। बारी हवेली एक सकरी गली मे ही बनी हुई एक हवेली हैं जिसे देखकर यह नहीं लगता कि ये अंदर से काफी बड़ी होगी। इसका टिकट 50 रुपए देकर आप अंदर जाते हैं। अंदर सामने ही शाही गद्दे लगे हुए हैं ,कुछ हुक्का और रंग बिरंगी पगड़िया भी रखी हैं -आप उनके साथ वही अलग अलग जगह पर राजस्थानी शाही अंदाज़ मे फोटो खींच सकते हैं।पुराने ज़माने के फ़ोन ,कुर्सियां के साथ भी आप फोटो लेके आप संकरी सीढ़ियों से ऊपर की मंजिलो को घूमते हैं जो भी एक तरह से म्युसियम ही हैं। लेकिन पर्यटको की दृष्टि से फोटोग्राफी के हिसाब से इस हवेली की सजावट की हुई हैं।यहाँ की खिड़कियों से जैन मंदिर साफ़ दिखाई देते हैं। यहाँ की खुली छत पर जा कर आप पुरे शहर का नजारा देख सकते हैं साथ ही साथ किले पर स्थित दूसरी खूबसूरत इमारतों को भी निहार सकते हैं।

करीब 45 मिनट यहाँ के लिए पर्याप्त हैं यहाँ से पेदल आप जैन मंदिर की तरफ जाते हैं। यहाँ कुल 7 जैन मंदिर हैं जो की ऋषभदेव जी और पाश्र्वनाथ जी को समर्पित हैं। आपको कैमरा ,मोबाइल सब कुछ बाहर ही लाकर मे रख कर अंदर जाना होता हैं। ये मंदिर भी पत्थरों से निर्मित हैं जो कि ईंटों के इंटरलॉक पैटर्न पर बने हैं। यहाँ की बनावट आपको दिलवाडा के जैन मंदिर (माउंट आबू के पास ) की याद दिला देंगे।

आपको गाइड बताता हैं कि इन सबके अलावा भी इस किले मे कई छोटे बड़े मंदिर ,हवेलिया हैं।आप जिस जगह को घूमना चाहे वहा से टिकट लेके उस चीज को घूम सकते हैं।

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खैर ,इन सब के अलावा आपको यहा जिस चीज से प्यार हो जाएगा वो हैं यहा की खूबसूरत गलिया जो कही तो पेंटिंग्स से सजी हैं ,कई जगह खूबसूरत दुकाने इस गलियों मे चार चाँद लगा रही हैं। आप आराम से यहाँ इन गलियों मे घूमते घूमते घंटो बिता सकते हैं फिर भी बोर नहीं होंगे।लेकिन अब शाम होने आयी है ,आप घूमते घूमते फिर अपनी बाइक के पास पहुंचते है,वो गायन कलाकार अभी भी वही बैठे हैं,आप उनको कुछ देर सुनकर एक 100 रुपये का नोट उनकी चटाई पर रख आते हैं और अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए सोचते हैं कि आने वाले कुछ दिन जैसलमेर की कई और जगह आपके इंतजार में हैं.............

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