राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन, देखीं कई शानदार जगहें

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Photo of राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन, देखीं कई शानदार जगहें by Rishabh Dev

राजस्थान गौरवशाली इतिहास और वैभवता का प्रतीक है। यहाँ का हर शहर अपनी एक अलग खासियत और खूबसूरती लिए हुए है। मैं राजस्थान की एक लंबी यात्रा पर निकल चुका था। राजस्थान की राजधानी जयपुर से शुरू हुई ये यात्रा जोधपुर से होकर बीकानेर पहुँच गई। अब मुझे राजस्थान के एक और खूबसूरत शहर की ओर निकलना था। राजस्थान की इस जगह का नाम है, जैसलमेर।

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बीकानेर में दो दिन घूमने के बाद रात को मैं बीकानेर में अपने होटल से सामान उठाकर रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। होटल से रेलवे स्टेशन पहुँचने में सिर्फ 5 मिनट का समय लगा। बीकानेर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन अपने सही समय पर पहुँची। हमने अपनी सीट पकड़ ली और कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। रात के अंधेरे में कुछ बाहर का तो दिखना नहीं था इसलिए मैं नींद की आगोश में चला गया। सुबह के 4 बजे जब आंख खुली तो ट्रेन जैसलमेर रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।

जैसलमेर

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मैं दूसरी बार राजस्थान के जैसलमेर की धरती पर कदम रख रहा था। मैं ट्रेन के अंदर अपना सामान समेट रहा था और लोग होटल के लिए अपना कार्ड लेकर अंदर आ रहे थे लेकिन मेरी होटल के लिए कहीं और बात हो चुकी थी। इसी तरह एक आदमी और अंदर आया और उसने भी सस्ते में कमरा दिलाने की बात कही। मैंने जब उसे बताया कि मेरी कहीं बात हो चुकी तो उसने कहा कि ठीक है, मैं वहाँ छोड़ देता हूं मेरे पास टैक्सी भी है। चलते-चलते उसने होटल का नाम और एड्रेस भी पता किया। इसके बाद मुझे बहलाने लगा कि मैं सस्ता और अच्छा होटल दूंगा। इसके अलावा वो फर्जी पैसा लगकर ठगी कर लेगा। मैंने जब मना कर दिया तो उसने कहा कि मेरी पास कोई टैक्सी नहीं है, दूसरी टैक्सी ले लो।

इसके बाद मैंने दूसरी ऑटो ली और होटल की तरफ चल पड़ा। हमारी ऑटो जैसलमेर की गलियों में चलती जा रही थी। कुछ देर में हमारी टैक्सी किले के पीछे पार्किंग में पहुँची। होटल का नाम है, डेजर्ट गोल्ड। मैंने एक सस्ता सा कमरा लिया जो रूकने के लिए बढ़िया है। अब कुछ देर मुझे आराम करना था। एक बार फिर से मैं नींद की आगोश में था। कुछ घंटे आराम करने के बाद सुबह 8 बजे उठा और फिर जैसलमेर को एक्सप्लोर करने के लिए तैयार हो गया।

सोनार किला

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जैसलमेर की स्थापना राव जैसल ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम जैसलमेर रखा गया है। हम पैदल-पैदल किले की तरफ चल पड़े। किले के सामान एक ठेले पर हमने दाल-पकवान खाया। इस स्वादिष्ट दाल पकवान का स्वाद लेकर जैसलमेर की यात्रा एकदम शानदार तरीके से शुरू हो गई। जैसलमेर किले को घूमने के लिए हमने एक गाइड भी कर लिया। कुछ देर में हम किले के अंदर थे।

जैसलमेर का किला दुनिया के सबसे विशालतम किलों में से एक है। 1156 में भाटी राजपूत शासक राव जैसल द्वारा बनवाया गया था। इस किले को सोने का किला भी कहा जाता है। जैसलमेर का किला एक विश्व विरासत स्थल है। सोनार किला जमीन से 250 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये किला 1500 फुट लंबा और 750 फीट चौड़ा है। किले के चार प्रवेश द्वार है। इस किले के अंदर 5000 से ज्यादा लोग रहते हैं। किले के अंदर लोगों के घर, दुकानें, होटल और हॉस्टल भी हैं।

जैन मंदिर

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जैसलमेर किले के अंदर पहुँचने के बाद हम सबसे पहले राजा-रानी महल के पास पहुँचे लेकिन हमने पहले जैन मंदिर जाने का तय किया। किले की गलियों में कुछ देर चलने के बाद हम जैन मंदिर पहुँच गए। जैसलमेर किले के अंदर 8 जैन मंदिर है। जैन मंदिर में जाने का टिकट नहीं है लेकिन फोटो और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। हमने टिकट लिया और जैन मंदिर के अंदर चल पड़े। पार्श्वनाथ मंदिर के अंदर की नक्काशी बेहद शानदार है। इसी तरह हमने सभी जैन मंदिर को देखा। सभी जैन मंदिर वाकई में बेहद सुंदर और देखने लायक हैं।

जैन मंदिरों को देखने के बाद हम फिर से किले की गलियों से गुजर रहे थे। इन गलियों मे बहुत सारी दुकानें हैं जहाँ आप अपने लिए कुछ खरीद सकते हैं। कुछ देर हम राजा महल के अंदर पहुँचे। राजा-रानी महल हमने टिकट लिया। हमने टिकट काउंटर से 50 रुपए का टिकट लिया और फिर किले को देखने के लिए निकल पड़ा। किले के अंदर मैंने जैससेमर किले के अलग-अलग महलों को देखा। इसके अलावा जैसलमेर के राजाओं के बारे में जानकारी दी गई और उस समय के हथियारों को भी देखा। जैसलमेर किले को पूरा देखने में काफी समय लग गया। लगभग 2 घंटे बाद मैं किले से बाहर निकला।

पटवों की हवेली

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जैसलमेर किले को देखने के बाद अब हमें पटवों की हवेली की ओर जाना था। हम पैदल-पैदल ही पटवों की हवेली पहुँच गए। पटवों की हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा ने किया था। पटवों की हवेली एक नहीं बल्कि पांच हवेलियों का एक समूह है। टिकट लेकर मैं कोठारी हवेली को देखने के लिए निकल पड़ा। इस समय ये हवेली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आती है। पटवों की हवेली के अंदर एक संग्रहालय है जिसमें आप समय के सामान, बर्तन, चित्रकारी और नक्काशी को देख सकते हैं।

पटवों की हवेली को देखने के बाद अब हमें कुछ और जगहों पर जाना था लेकिन सबसे पहले खाना खाना था। दाल पकवान के अलावा हमने कुछ नहीं खाया था। अब हम खाने की खोज में निकल पड़े। हम किले के पास में ही एक होटल में गए और हमने वहाँ शानदार खाना खाया। खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में आ गए। अब हम कुछ घंटे आराम करने वाले थे। शाम को हम फिर से एक बार जैसलमेर की गलियों में थे।

गड़ीसर लेक

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जैसलमेर की गलियों में चलते हुए हम रोड पर गए और फिर पहुँचे गडीसर लेक। गडीसर लेक रेगिस्तान में पानी का अथाह समुंदर है। गड़ीसर झील का निर्माण 13वीं शताब्दी में राव जैसल द्वारा करवाया गया था। इस लेक को क्षेत्र के सूखे को खत्म करने के लिए बनवाया गया था। बाद में जैसलमेर के मेहरावल गड़सी सिंह ने इस तालाब का जीर्णोद्धार करवाया। बाद में इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर गड़ीसर लेक रखा गया।

गड़ीसर झील में आप बोटिंग कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को सूर्यास्त के बाद जब बादल लाल हो जाता है तो ये झील और भी खूबसूरत हो जाती है। मैंने वो नजारा देखा तो लगा कि वक्त वहीं रूक जाए और ये नजारा ऐसे ही बना रहे। थोड़ी देर में एक जगह लोगों की भीड़ जमा हो गई। अंधेरा होने के बाद पहले फव्वारा चला और फिर उसी फव्वारे पर लाइट एंड साउंड शो शुरू हो गया। हम थोड़ी देर बाद एक रेस्टोरेंट में गए और वहाँ राजस्थानी थाली का स्वाद लिया। इस तरह मेरी जैसलमेर की यात्रा पूरी हुई। इस दिन जैसलमेर शहर की कई जगहों को मैंने अच्छे से देखा। अभी तो जैसलमेर के सबसे अच्छे दिन और अनुभव से गुजरना था।

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