शिमला -१

Tripoto
23rd Oct 2023
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Day 1

निकल पड़ा हूं,फिर से उसी एहसास को जगाने जो सिलीगुड़ी के रास्ते दार्जलिंग होते कभी गंगटोक में होता था ।
हां मैं आज पहुंच गया हूं...हिमाचल का प्रमुख हिलस्टेशन नगरी - शिमला में । हर बार की तरह इस बार भी बेतरतीब योजना लिए अजमेर से चंडीगढ़ और चड़ीगढ़ से आ गया हूं। शिमला । असम से राजस्थान की बाद यह मेरी पहली हिमालयन यात्रा है ।  चंडीगढ़ में हालांकि मेरे साथी रहते हैं, और वे कई बार चंडीगढ़ आने का निमंत्रण भी दे चुके हैं । पर सोचा इस बार चुपचाप ही चंडीगढ़ से निकला जाए । और चंडीगढ़ जंक्शन पर उतरने के बाद जीरकपुर से एक टैक्सी में बैठ गया और उसने लगभग 3 घंटे में शिमला के मॉल रोड वाली लिफ्ट के पास छोड़ दिया । चंडीगढ़ से रवाना होते ही कुछ दूर चलते ही हिमालय अपना विस्तृत रूप दिखाने लगता है । और मैं जैसे उसकी सुंदरता पर खो गया । जैसे जैसे hm आगे बढ़ते गए हिमालय और भी विराट स्वरूप में हमारे सामने आने लगा । कालका से आगे आने के बाद हिमालय का प्रवेशद्वार खुल जाता है । और हम धीरे धीरे ऊंचाई पर चढ़ने लगते है । और तभी मुझे एहसास होता है एक और शहर सिलीगुड़ी का । सिलिगुड़ी भी पूर्वोत्तर का चंडीगढ़ ही है । यदि आपको दार्जिलिंग या गंगटोक जाना है,  तो ' सिलीगुड़ी तो जाना पड़ेगा ना मेरे दोस्त' ।वही सब मेरे दिमाग में चलता रहा और सोचा कि इन पहाड़ों ने कितने नगरों की दशा और दिशा ही बदल दी । आगे बढ़ते हुए हमने इसी वर्ष जो प्रकृति ने कहर बरपाया उसके निशान भी देखें ।हमारे ड्राइवर अमित ने बताया कि " यही है चक्की मोड़" यहां पर बहुत नुकसान हुआ । और पूरे रास्ते हमने देखा कि वाकई पहाड़ी जीवन आसान नहीं । हम आते हैं छुट्टियों के बहाने और अपने मन बहलाकर निकल जाते हैं ।और शायद अगली छुट्टियों के आने तक हम इधर अपना मुंह भी नहीं करते। । कुछ ऐसा ही मंजर 2018 में अरुणाचल के  तवांग की यात्रा के दौरान देखा था । बोमडिला से आगे निकलने पर देखा कि स्थानीय महिलाएं ना केवल हाथ से पत्थर तोड़कर सड़क के किनारे उन्हें लगाकर हमारी सुरक्षा कर रही है । अपितु पहाड़ों को तोड़कर नया रास्ता बनाने में भी पुरुषों के समान ही कंधे से कंधा मिलाकर अपने श्रम सौंदर्य का परिचय दे रही हैं । तब वहां एक जगह हमारे एक साथी जो गत कुछ सालों से तवांग में ही कार्यरत हैं उन्होंने बताया कि यह अभी कुछ दिन पहले एक पहाड़ से बड़ा सा पत्थर आया और उसे कुचलकर खाई में गिर गया । मैं थोड़ा सा सहम गया कहीं हमारी गाड़ी पर न गिर जाए । फिर मैंने अपने गाड़ी चालक  वांगछु से पूछा जो कि अरुणाचल में  नाफरा गाँव में रहता था " अरे क्या डर नहीं लगता आप लोगों को।" वो बोला "अरे क्या डरेगा साब ,हमारा  काम  आने वाला गेस्ट की सुरक्षा करना और सुविधा देना है तो। " वाकई कमाल का सेवा भाव है इन लोगों में । नाफरा नाम मुझे सुना हुआ सा लगा । और इससे याद आया कि नाफरा हमारे देश के माननीय केंद्रीय मंत्री श्री किरन रिजूजू का भी गृहनगर है । इतने सेवाभावी और समर्पित पहाड़ियों के लिए हम क्या कुछ कर पाते हैं । और ये लोग अगर दिल्ली या किसी अन्य बड़े शहरों में आ जाए तो हम उन्हें देखकर भौहें चढ़ाने लगते हैं ।खैर... मैं भी अपने विचारों में चढ़ते उतरते कसौली की सुंदरता देखते हुए । चीड़ और देवदार के वृक्षों को निहारते हुए आ पहुंचे  शिमला  । शिमला के प्रवेश द्वार पर शिमला लिखकर स्वागत की परंपरा का निर्वहन किया गया । टैक्सी वालें ने मॉल रोड के लिए लिफ्ट के पास उतार दिया । और फिर यहां से मॉल रोड जाने के लिए लिफ्ट का उपयोग किया जाएगा । और लिफ्ट का किराया है 20रुपए । ऊपर जाने के लिए हमें बीच में एक बार लिफ्ट बदलनी पड़ी । इस प्रकार दो लिफ्टों के बलबूते पर हम आ पहुंचे । मॉल रोड।
मॉल रोड से याद आ गया दार्जिलिंग । जी हाँ दार्जिलिंग का मुख्य केंद्र भी मॉल रोड ही था । ना केवल नाम एक जैसा था बल्कि संरचना भी कुछ कुछ वैसी ही थी ।शिमला में मॉल रोड की सबसे खास बात है -यहां का क्राइस्ट चर्च। जो 19 वीं सदीं में बना था । इसकी वास्तु कला बाकी अदभुत थी । यहां की  दो चीजों ने मेरे अंतर्मन को छुआ । पहली यहां की खिड़कियों में लगे कांच,जिस पर ईसा मसीह की प्रभुता को दर्शाया गया था । जिस पर यदि सूर्योदय के के समय रोशनी पड़े तो और वो सारे चित्र जीवंत हो उठते हैं । और दूसरा यहां का पाइप पियानो। कुछ पाइपों को एक साथ लगा देखकर मुझे लगा कि शायद सर्दी के बचाव के लिए है ,पर ऐसा नहीं था वो पियानो यहां किसी विशेष अवसर पर बजाए जाते हैं । चर्च से बाहर निकलकर सामने श्रीमती इन्दिरा गांधी जी की पाषाण मूर्ति लगी है । जहां से पूरे शिमला शहर का अद्भुत दृश्य नजर आता है । और बिलकुल सामने नजर आता है जाखू के हनुमान जी की 108 फीट ऊंची प्रतिमा । और कल की यात्रा में यह शामिल होने वाला है । मिलते हैं - कल ।

Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Photo of The Mall Shimla by Manish Baswala
Day 2

आज के दिन शुरुआत आज कुछ खास थी। कारण आज का दिन भी खास था ।क्योंकि आज दशहरा है । और आज के कार्यक्रम सूची में यहां का प्रसिद्ध जाखू मंदिर जरूर शामिल था । इस प्रसिद्ध मंदिर का दशहरा भी प्रसिद्ध है,यहां । पर इससे पहले पहले आज होटल बदलना था और साथ ही सूची में जाखू से पहले स्थान दिया एडवांस स्टडी इंस्टीट्यूट को । होटल बदलने के साथ ही ।अगले पड़ाव की ओर बढ़ गया । इंटीट्यूट के लिए मॉल रोड से नीचे आने के बाद बहुत सारी टैक्सियां मिल जाती है ।और टैक्सी पकड़कर पहली फ़ुरसत में मैं पहुंच गया संस्थान। और वहां जाने पर पता चला कि आज दशहरा है और राजकीय अवकाश है । और निराश होकर फिर आ गया - मॉल रोड
। ठीक वैसे ही जैसे विट्ठलदास जी का पंछी - "जैसे उड़ी जहाज को पंछी उड़ी उड़ी पुनः जहाज पर आवे ।"  और मॉल रोड आकार मैं जाखू के लिए निकल पड़ा ।और  जाखू जाने  के लिए तीन विकल्प उपलब्ध है -1. टैक्सी (राज्य सरकार की सरकारी भी) 2. रोप वे 3. पैदल तीनों का अपना अलग -अलग मजा है । और मैंने फिलहाल चुनाव किया पहले विकल्प का । एक 60 - 65 वर्ष के बुजुर्ग से दिखने वाले ड्राइवर महोदय ने मुझे ऊपर जाखू पहाड़ी तक ले जाने की जिम्मेदारी ली। और बिलकुल संकरे रास्ते से जिसके एक तरफ ऊंचा अटल पहाड़ दूसरी और गहरी खाई । और ऐसा कि ध्यान जरा सा भी चूका और खाई हमें खुद में समा लेती ।पर ड्राइवर काका ने चालन कुशलता देखकर मुझे शिलांग याद हो आया । जहां 2017 में जब मैं पहली बार शिमला एयरपोर्ट से शिमला शहर जा रहा था । तो मैंने अपने टैक्सी ड्राइवर जो दिखने में किशोर वय का लग था और इतने संकरे रास्ते से सरर से गाड़ी ले जा रहा था । मैंने उससे पूछा - यहां गाड़ी चलाने की कोई आयु निर्धारित नहीं है क्या । वो बोला -ऐसा क्यों बोलता है साब ।
अरे तुम 18 - 19 साल के गाड़ी चला रहे हो । - मैंने कहा
वो बोला - अरे साब हम 32 साल के हैं । वाकई ये मुझे चौंकाने वाला वाकिया था । पहाड़ी लोगों का खान - पीन ,शारीरिक गतिविधियां और भौगोलिक स्थिति ये सब मिलकर एक पहाड़ी को और अधिक आयु तक जवान बनाएं रखते हैं । और इसी वैचारिक कशमकश के बीच पहुंच गए जाखू । थोड़ी और सीढियां चढ़कर हम मंदिर के मुक्त द्वार पर  पहुंच गए। जहां आज न केवल बाहरी पर्यटकों की भीड़ थी ,अपितु स्थानीय निवासी भी बड़ी संख्या में वहां पहुंच गए थे । वहां नेपाली समुदाय के लोग भी अच्छी खासी संख्या में दिखे । क्योंकि याद है मुझे जब मैं 2020 (कोविड प्रकोप) रुकने के बाद मैं और मेरे एक साथी इन्हीं दिनों में असम के गोवालपरा से दार्जिलिंग यात्रा के लिए निकले थे । डरते हुए मास्क मुंह से चिपकाए और सेनिटाइजर की बोतल को सीने से लगाए हम दशहरे के दिन ही दार्जिलिंग पहुंचे । और वहां सभी माथे पर सिंदूरी चावल लगाए हुए थे जिन्हें ' टीका ' बोलते हैं ।  और दशहरे को ' दशैं ' । इसी संदर्भ में एक पारंपरिक गीत भी प्रचलित है -
दशैं आयो, खाऊंला-पिऊंला ।
कहाँ वाट ल्याऊंला? चोरेर ल्याऊंला।
धत पाजी, पर जा!'
और शिमला में भी मैने कुछ नेपाली भाइयों को दशैं की शुभकामनाएं दी । जाखू मंदिर से एक रामायण की एक रोचक घटना जुड़ी है -
मान्यता है कि लंका के युद्ध में जब हनुमान जी आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेने हेतु हिमालय की ओर द्रुतगति से आ रहे थे तो उनकी दृष्टि जाखू पर्वत पर  तपस्या में लीन यक्ष ऋषि पर पड़ी। कालांतर में उनके नाम से ही (यक्ष -याक -याकू -जाखू नाम पड़ा ।
और वहां 108 फीट ऊंची हनुमान प्रतिमा को देखकर ही हनुमान जी के विराट स्वरूप का ज्ञान होने लगता है। सम्पूर्ण शिमला  शहर में सबसे ऊंची चोटी होने की ख्याति भी जाखू को ही प्राप्त है। जाखू की चर्चा हो इसी के समानांतर गंतोक(गंगटोक,सिक्किम) की बात ही न हो ऐसा कैसे संभव है । गंगटोक के हनुमान टॉक। हनुमान टॉक को लेकर लोगों में मान्यता है कि जब हनुमान जी संजीवनी लेकर वापस लौट रहे थे ,तो इसी स्थान पर उन्होंने विश्राम किया था । और ये भी माना जाता है कि आज भी इस पर्वत पर संजीवनी बूटी विद्यमान है । बस पहचान करने वाला कोई नहीं । और अब इन इन दोनों स्थानों के बीच में मेरा मन डोल रहा है । सूरज ढलते ढलते लोग के एक और स्थित प्रांगण में एकत्र हो गए। जहां रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के तीन ऊंचे ऊंचे पुतले दहन के लिए खड़े हुए थे । और पता चला कि ये पुतले बनाने वाले कलाकार कई सालों से  उत्तरप्रदेश के मेरठ से आते है ।और तभी घोषणा हुई कि रावण दहन के इस कार्यक्रम में हमारे साथ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री महोदय भी शामिल होने वाले हैं । जीवन में पहली बार हिमालय में रावण दहन देखना , चीड़ और देवदार के ऊंचे ऊंचे वृक्षों के बीच ठिठुराती हुई ठंडी शरद हवाओं के बीच यह यह दृश्य शिरे से उत्साह और उमंग को मेरे मन में भर रहा था । फिर सोचा पहाड़ों से रामायण का संबंध रहा होगा .. और याद आया सीता माता भी तो नेपाल के जनकपुर से थी पहाड़ों और पहाड़ियों का तो रामायण से अटूट संबंध है । तो क्या ये पहाड़ी रावण जलाकर अपनी बेटी के अपमान का बदला ले रहे हैं । और इसी के साथ मुख्य अतिथि के आगमन के साथ ही रावण दहन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ।इतनी भीड़ बड़ी मुश्किल से मंदिर से बाहर आ पाए। एक स्थानीय व्यक्ति जो परिवार के साथ आए थे ,उन्होंने us भीड़ भाड़ वाले रास्ते को छोड़कर एक दूसरे संकरे रास्ते से हमें नीचे यानी मॉल रोड तक लेकर आए । जैसे किसी ने पौराणिक काल से उठाकर ब्रिटिश काल में छोड़ दिया हो ।

Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Photo of शिमला -१ by Manish Baswala
Day 3

आज के दिन की शुरुआत में मिले दो दोस्त एक दिल्ली से और एक राजस्थान के जोधपुर से । आज का कार्यक्रम सूची में शामिल था हिमाचल प्रदेश के पर्यटन विभाग की बस से शिमला ,कुफरी और मशोबरा की यात्रा। जिसका कार्यालय था मॉल रोड स्थित स्कैंडल प्वाइंट पर पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की मूर्ति के ठीक सामने । यहां से सबको एक साथ लेकर नीचे मुख्य मार्ग तक ले जाते हैं , जहां ठीक 10.30 बजे बस तैयार मिलती है ।और 11 और यात्रियों के साथ मिनी बस से हम यात्रा पर निकल गए । गहरी खाइयों में नजर आते रंगीन शंकुआकर छत के घर मन को अभिभूत कर रहे थे । तभी बस में लगभग 3 साल का एक बच्चा अपनी आगे वाली सीट पर बैठे एक यात्री जो कि गंजे थे उनके सिर पर हाथ घूमती हुई बोली मुझे ये चाहिए । और बस ठहाकों से गूंज गई । तभी मैंने भी सुना दी सूरदास जी काव्य पंक्तियां - ' मैया मोहि चंद खिलौनों लही
एही लौटी धरनी तेरी गोदी न एहो।'
भावार्थ के बाद   सब यात्री फिर से खिल खिला उठे ।
इस यात्रा का पहला पड़ाव - ग्रीनवेली । जो  पूर्णत: देवदार वृक्षों से अच्छादित था । दूर अनंत तक जहां नजर जाती घाटी में बस देवदार। इसके बाद अगला और महत्त्वपूर्ण पड़ाव - कुफरी । कुफरी हिमालयाई अदाओं से परिपूर्ण था ।लेकिन वहां दो स्थान का विशेष महत्त्व था -

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