आइए चलें बीहड़ों के बीच चंबल नदी में नौका विहार पर An evening in River Chambal !

Tripoto
8th Aug 2021
Day 1

चंबल के इलाके का नाम सुनकर आपमें से ज्यादातर के मन में दस्यु सरदारों और खनन माफ़िया का चेहरा ही उभर कर आता होगा। अब इसमें आपकी गलती भी क्या सालों साल प्रिंट मीडिया में इस इलाके की ख़बरों में मलखान सिंह व फूलन देवी सुर्खियाँ बटोरते रहे और आज भी ये इलाका बालू व पत्थर के अवैध खनन करने वाले व्यापारियों से त्रस्त है।

इन सब के बीच चुपचाप ही बहती रही है चंबल नदी। ये चंबल की विशेषता ही है कि मानव के इस अनाचार की छाया उसने अपने निर्मल जल पर पड़ने नहीं दी है और इसी वज़ह से इस नदी को प्रदूषण मुक्त नदियों में अग्रणी माना जाता है। पर अचानक ही मुझे इस नदी की याद क्यूँ आई? दरअसल इस नदी से मेरी पहली मुलाकात अक्टूबर के महीने में तब हुई जब मैं यात्रा लेखकों के समूह के साथ आगरा से फतेहाबाद व इटावा के रास्ते में चलते हुए चंबल नदी के नंदगाँव घाट पहुँचा।

अक्टूबर के पहले हफ्ते में दिन के करीब साढ़े ग्यारह बजे हम आगरा शहर से निकले। आगरा से सत्तर किमी दूरी पर चंबल सफॉरी लॉज में हमारी ठहरने की व्यवस्था हुई थी। हरे भरे वातावरण के बीच यहाँ के जमींदारों की प्राचीन मेला कोठी का जीर्णोद्वार कर बनाया गए इस लॉज को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया है। दिन का भोजन कर थोड़ा सुस्ताने के बाद हम चंबल नदी के तट पर नौका विहार का लुत्फ़ उठाने के लिए चल पड़े।

मुख्य सड़क से नंदगाँव घाट जाने वाली सड़क कुछ दूर तो पक्की थी फिर बिल्कुल कच्ची। अब तक चंबल के बीहड़ों को फिल्मों में देखा भर था। पर अब तो सड़क के दोनों ओर मिट्टी के ऊँचे नीचे टीले दिख रहे थे। वनस्पति के नाम पर इन टीलों पर झाड़ियाँ ही उगी हुई थीं। बीहड़ का ये स्वरूप बाढ़ और सालों साल हुए भूमि अपरदन की वज़ह से बना है।

वैसे नौ सौ अस्सी किमी लंबी चंबल नदी खुद भी एक घुमक्कड़ नदी है। इंदौर जिले के दक्षिण पूर्व में स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों से निकल कर पहले तो उत्तर दिशा में मध्यप्रदेश की ओर बहती है और फिर उत्तर पूर्व में घूमकर राजस्थान में प्रवेश कर जाती है। राजस्थान व मध्य प्रदेश की सीमाओं के पास से बहती चंबल का उत्तर पूर्व दिशा में बहना तब तक ज़ारी रहता है जब तक ये उत्तर प्रदेश तक नहीं पहुँचती। यमुना को छूने का उतावलापन इसकी धार को यूपी में उत्तर पूर्व से दक्षिण पूर्व की ओर मोड़ देता है।

कच्ची सड़क शुरु होते ही हमें बस से नीचे उतरना पड़ा। अब नदी तक पहुँचने के लिए अगले डेढ़ किमी पैदल ही चलने थे। टीलों के बीच समतल जगह पर थोड़ी बहुत खेती भी हो रही थी। आस पास के गाँव के बच्चे बड़े कौतूहल से हमारे छोटे से कुनबे को नदी की ओर जाते देख रहे थे। यही विस्मय लंबे घूँघट काढ़े महिलाओं के चेहरे पर भी था जो ये स्पष्ट कर दे रहा था कि ये इलाका सामान्य पर्यटकों से अब तक अछूता है। हम ढलान पर नीचे की ओर जा रहे थे सो नदी का नीला पानी दूर से ही दिखने लगा था। नदी के तट पर लोगों से भरी नाव दिख रही थी जिसकी मदद से यात्री उस पार के अपने गाँव की ओर आ जा रहे थे।

नदी के किनारे ये इकलौता पेड़ हमारी आगवानी के लिए खड़ा था। बीस लोगों के हमारे समूह के लिए दो नावों की व्यवस्था की गई थी। दरअसल चंबल नदी से जुड़े जिस इलाके में हम थे वो राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य के अंदर आता है। नदी और उसके आस पास का इलाका मगरमच्छ, घड़ियाल, डॉल्फिन व कछुओं के आलावा तरह तरह के पक्षियों की सैरगाह है।

चार बजे तक हम चंबल नदी के बीचो बीच थे। हमारा गाइड बता रहा था कि चंबल नदी को शापित नदी का तमगा दिया जाता है। यानि ये एक ऐसी नदी है जिसके पानी का प्रयोग करना अशुभ माना जाता है। इसकी दो वज़हें बताई जाती हैं । महाभारत में इस नदी का उल्लेख चर्मण्वती के नाम से हुआ है। कहते हैं कि आर्य नरेश रांतिदेव ने ढेर सारे यज्ञ कर इतने जानवरों की आहुति दी कि उनके रक्त से इस नदी का जन्म हुआ।। दूसरी ओर शकुनी द्वारा जुए में द्रौपदी को जीत कर उसका चीर हरण करने की घटना भी इसी इलाके में हुई और तब द्रौपदी ने शाप दिया कि जो इस नदी के जल का इस्तेमाल करेगा उसका अनिष्ट होगा। बहरहाल इन दंतकथाओं का नतीजा ये हुआ कि इस नदी के किनारे आबादी कम ही बसी और इसी वज़ह से ये आज इतनी साफ सुथरी है।

नदी के उस पार का इलाका मध्य प्रदेश में पड़ता है और उसी तरफ़ हमें पक्षियों की पहली जमात दिखाई पड़ी। पर उन्हें क़ैमरे में क़ैद करना आसान ना था। ज्यादा दूर से लंबी जूम लेंस की आवश्यकता थी और ज्यादा पास पहुँचे कि वो यूँ फुर्र हो जाती। फिर भी हम इस Wire Tailed Swallow के करीब पहुँच पाए। जेसा कि नाम से ही स्पष्ट है इनकी पूँछ की आकृति दो समानांतर तारों जैसी होती है। नरों में ये तार मादा की अपेक्षा लंबे होते हैं।

ये अक्सर पानी के पास ही पाए जाते हैं। कीड़ो मकोड़ों और मक्खियों का ये पानी की सतह के ऊपर हवा में उड़ते हुए ही शिकार कर लेते हैं।

घड़ियालों व मगरमच्छ को पानी में तैरते कई जगह देखा। कहीं कहीं तो पानी की सतह में उनकी पीठ का मध्य भाग ही ऊपर दिखता था। ऐसा नज़ारा इससे पहले मुझे उड़ीसा के भितरकनिका में देखने को मिला था। अब इन्हें ही देखिए किस तरह तट पर आराम फरमा रहे हैं।

डेढ़ घंटे नदी के बीच बिता कर हम वापस लौटने लगे क्यूँकि अँधेरा होने लगा था और हमें यहाँ से पास के बटेश्वर के मंदिरों को भी देखने जाना था। नौका के पीछे हमें सूर्य अपनी अंतिम विदाई दे रहा था। नीली नदी ने अचानक ही काला सुनहरा रूप धारण कर लिया था।

चंबल नदी की ये नौका यात्रा मन में नीरवता जगाने के लिए काफी थी। पता नहीं पानी में ऐसा क्या कुछ है कि जब जब हम अगाध जलराशि के बीच होते हैं तो अपने आप में खो जाते हैं। शायद माहौल की गहरी शांति हमें अपने मन को टटोलने में मदद करती है।

चंबल नदी से कुछ घंटों का हमारा ये मिलाप हमें इसके साथ कुछ और वक़्त बिताने को उद्वेलित कर गया। नदी से विदा लेने का मन तो नहीं कर रहा था पर आशा थी कि शायद कभी और भी मौका मिलेगा बीहड़ों और उसके साथ बहती इस नदी से से दोस्ती करने का... उनके घुमावदार रास्तों में ख़ुद को भुलाने का..अपने और करीब पहुँचने का। ताकि अगली बार जब चंबल के बीहड़ के साथ ये नदी सामने हो तो मन के अंदर ख़ौफ़ नहीं बल्कि एक नर्म सा अहसास जगे ठीक उसी तरह जो ये नारंगी फूल सर्पीली लताओं के बीच जगा रहा था।

चंबल नदी के पास सही वक़्त बिताने का समय नवंबर से मार्च तक का है। रहने के लिए फिलहाल तो चंबल सफारी लॉज ही एकमात्र विकल्प है। पर जब भी यहाँ आइए कम से कम दो दिन ठहरिए जरूर। तभी इस जगह का सही आनंद ले पाएँगे।

Photo of आइए चलें बीहड़ों के बीच चंबल नदी में नौका विहार पर An evening in River Chambal ! by Abhinendra Tomar
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