केदारनाथ: दर्शन से लेकर मोक्ष की एक अद्भुत यात्रा

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लाखों भक्तों की आस्था से जुड़ा हुआ भोले बाबा का पवित्र स्थान, केदारनाथ, जहाँ भक्त हर साल बाबा की अपने हाथों से सेवा करते हैं। उत्तराखंड स्थित केदारनाथ मंदिर में लाखों दुःख और कठिनाइयाँ झेलते हुए भक्त बाबा के घर पर दस्तक देते हैं। भोले बाबा भी आशुतोष हैं, बस हाथ जोड़ो और बाबा संतोष पा जाते हैं। उत्तराखंड की उँची चोटियों के बीच बसा केदारनाथ धाम वो स्थान है जहाँ लाखों तीर्थ यात्री एक बार तो ज़रूर जानना चाहते हैं। तो अगर आप भी भोले के करीब जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो नीचे दी गई जानकारी आपके बहुत काम आएगी!

केदारनाथ - शिव शम्भू के साक्षात् दर्शन

केदारनाथ की कहानी, रोचक और पुरानी

केदारनाथ का इतिहास उतना ही रोमांचक है, जितनी अद्भुत हैं केदारनाथ की कहानी। प्राचीन काल से अभी तक कई कहानियाँ केदारनाथ धाम से जुड़ी हुई हैं। राहुल सांकृत्यायन तक इसका ज़िक्र अपनी कहानियों में कर चुके हैं।

जब केदार में ही बस गए भगवान

एक कहानी कुछ ऐसी है कि भगवान विष्णु के अवतार नर व नारायण ऋषि हिमालय के केदार नामक स्थान पर भगवान शिव की तपस्या करते थे। भगवान तुरंत प्रसन्न हुए और इसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा यहीं वास करने का आशीर्वाद दे दिया। अभी यहीं पर केदारनाथ मंदिर है।

पांडवो ने भी लिया केदारनाथ का सहारा

एक दूसरी कहानी ऐसी है कि पाण्डवों ने जब महाभारत का युद्ध जीत लिया तो सभी भाइयों के सर भ्रातृहत्या का पाप भी चढ़ा। युधिष्ठिर ने सभी भाइयों से इस पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की तपस्या करने का मन बनाया। लेकिन भगवान शिव सभी पाण्डवों पर क्रोधित थे। भगवान ने तय किया कि वे किसी पाण्डव को आशीर्वाद नहीं देंगे और वे केदारनाथ को निकल गए। पाण्डव शिव जी को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते केदारनाथ तक आ गए। अतः भगवान ने बैल का रूप धरा और सब बैलों में ही मिल गए।

भीम ने योजना बनाकर स्वयं को विशाल कर लिया और दोनों पहाड़ों तक पाँव फैला लिए। इसके बीच से सभी बैल गुज़र गए लेकिन भगवान शिव रूपी बैल भीम के पाँव के बीच से निकलने को राज़ी नहीं हुए, बल्कि अंतर्ध्यान होने लगे। लेकिन उससे पहले ही भीम शिव रूपी बैल का आशीर्वाद लेने के लिए झपटे। इस भक्ति और इतनी तपस्या को देखकर भगवान शिव का रुष्ट हृदय पिघला और उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पाण्डवों को भ्रातृहत्या के पाप से मुक्त कर दिया।

केदारनाथ के दर्शन का सही समय

केदारनाथ यात्रा करने का सबसे सही समय मई- जून और सितंबर से अक्टूबर का होता है। इस समय मौसम ना तो बहुत ज्यादा गर्म होता है और ना ही बहुत ज्यादा ठंडा। ध्यान रहे कि जुलाई-अगस्त या दिसंबर-जनवरी के महीनों में केदारनाथ यात्रा करना एक अच्छा वक्त नहीं है क्योंकि इन महीनों में भारी बारीश और बर्फबारी के कारण भूस्खलन और रास्ते बंद होने की परेशानी अक्सर होती है।

केदारनाथ पर्यटन स्थल

एक यात्री के लिए यहाँ केदारनाथ मंदिर के अलावा भी कई ऐसी घूमने लायक जगहें हैं जो आपके इस ट्रिप को रोचक और यादगार बनाती हैं लेकिन मुख्य मंदिर के दर्शन बिना किसी भी भक्त की यात्रा पूरी नहीं होती।

1. केदारनाथ मंदिर

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित केदारनाथ का भव्य मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कइयों के लिए ये है भोले बाबा का पवित्र स्थान और कुछ के लिए है मोक्ष का स्थल, जहाँ से मुक्ति का मार्ग खुलता है। केदारनाथ यात्रा का मार्ग यहीं से प्रारम्भ होता है। हिमालय की बर्फ़ीली वादियों की तलहटी में केदारनाथ का पवित्र धाम भक्तों के रंग में चढ़कर आपको ठंड का एहसास ख़त्म कर देता है।

2. वासुकी ताल

श्रेय : विकिमीडिया

Photo of वासुकी ताल, Uttarakhand by Manglam Bhaarat

ट्रेकिंग करने वालों के लिए तो ये जगह स्वर्ग है। केदारनाथ वीडियो में आपने इस जगह को कई बार देखा होगा। ठंड के मौसम में वादियाँ पूरी तरह से बर्फ़ीली हो चुकी होती हैं और ट्रेक का मज़ा चौगुना हो जाता है। इस ट्रेक से गुज़रते हुए आपको चौखम्भा की चोटियों का जो दृश्य मिलता है, वो नज़ारा एकदम जादुई है। इसके साथ आपको चतुरंगी और वासुकी ग्लेशियर का दर्शन भी मिलता है।

3. शंकराचार्य समाधि

श्रेय : विकिपीडिया

Photo of केदारनाथ: दर्शन से लेकर मोक्ष की एक अद्भुत यात्रा by Manglam Bhaarat

केदारनाथ का जब भी ध्यान आता है तो इसके साथ आद्य शंकराचार्य का नाम भी आता है। कहते हैं कि अद्वैत दर्शन के प्रणेता आद्य गुरू शंकराचार्य ने ही पाण्डवों के बनवाए मंदिर को पूरा करवाया था और मात्र 32 वर्ष की उम्र में निर्वाण प्राप्त किया था।

4. अगस्त्यमुनि मंदिर

मान्यता है कि अगस्त्यमुनि ने यहाँ आकर पूरे एक वर्ष तक लगातार तपस्या की थी। यहाँ का प्राचीन मंदिर वास्तु दर्शन का प्रसिद्ध उदाहरण है तथा दीवारों पर भी कला का काम बख़ूबी किया गया है।

5. सोनप्रयाग

मंदाकिनी नदी और वासुकी नदी का संगम सोनप्रयाग पर होता है। पुराणों में इस जगह को भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जानते हैं। इस संगम पर जाकर भक्त सीधा बैकुण्ठ धाम की सैर करते हैं, ऐसी यहाँ की मान्यता है।

यदि आपके पास समय बचे तो आप भैरव नाथ मंदिर, गाँधी सरोवर और देवरिया ताल, गौरीकुंड, गुप्तकाशी, त्रियुगी नारायण और उक्षीमठ के दर्शन भी कर सकते हैं।

केदारनाथ में खाने को ख़ास

केदारनाथ में आपको उत्तर भारतीय, गुजराती और राजस्थानी खाना मिल जाएगा। लेकिन मेरी मानो तो आपको उत्तराखंडी थाली का लुत्फ़ ही उठाना चाहिए। इसके अलावा आपको यात्रा के बीच में ही खाने के लिए जगह जगह पर अच्छे होटल और दुकानें मिल जाएँगी।

कैसे पहुँचें केदारनाथ

ट्रेन मार्ग : केदारनाथ के सबसे नज़दीक 216 कि.मी. दूर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (RKSH) है जहाँ से आपको मंदिर तक पहुँचने के लिए गाड़ी मिल जाएगी।

सड़क मार्ग : केदारनाथ पहुँचने के लिए सीधा बस नहीं जाती है। इसके लिए सबसे पहले आपको हरिद्वार या फिर ऋषिकेश पहुँचना पड़ेगा। वहाँ से आपको केदारनाथ के लिए बस मिल जाएगी।

हवाई मार्ग : केदारनाथ के सबसे नज़दीक के हवाई अड्डे देहरादून के लिए आपको फ़्लाइट मिल जाएगी। वहाँ से आप कैब लेकर केदारनाथ तक पहुँच सकते हैं।

केदारनाथ: ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है यहाँ

लाखों श्रद्धालु हर वर्ष अपने बाबा के दर्शन को यहाँ आते हैं। इसलिए केदारनाथ प्रशासन ने भी यहाँ श्रद्धालुओं के रहने की समुचित व्यवस्था कर रखी है । इसलिए बहुत ज़्यादा जेब ढीली किए बिना आपको रहने के लिए आवास मिल जाएँगे।

पंजाबी सिंध आवास, केदार वैली रिज़ॉर्ट्स, राजस्थान सेवा सदन में आपको ठीक दामों पर रहने के लिए आवास की व्यवस्था हो जाएगी।

केदारनाथ वो यात्रा है, जिसमें कुछ दिनों में ही आप कुछ साल बड़े हो जाते हैं। यहाँ क्लिक करें और अपने इस सफ़र को हमारे साथ साझा करें ।

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