चित्तौडगढ से लगभग 90 किलोमीटर दूर और उपरमाल के पठार के दक्षिण की छोर की तरफ जोगनिया माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। जोगनिया माता मंदिर हाडा चौहानों की कुलदेवी है और इस मंदिर को स्थानीय निवासी आठवी शताब्दी में निर्मित होना मानते है। मंदिर से तक़रीबन एक किलोमीटर दूर प्राचीन बम्बावदे गढ़ के अवशेष स्थित है जो की चौहान राजपूतो से सम्बंधित था और इतिहाकारो के अनुसार बम्बदेव चौहान ने इसकी स्थापना की थी बाद में चौहान शासक देवा ने मेवाड़ के महाराणा हम्मीर की सहायता से बूंदी पर अधिकार कर लिया था और परवर्ती काल में चौहानों का मेवाड़ के सिसोदियो से सम्बन्ध खराब होने पर बम्बावदे पर सिसोदियो ने अधिकार कर लिया था|स्थानीय निवासियों में तथा आस पास के क्षेत्रो में जोगनिया माता के प्रति अगाध श्रद्धा है तथा प्रतिदिन सैकड़ो श्रद्धालु यहाँ आते है।
वर्तमान में मंदिर के चारो तरफ विभिन्न समाजो की धर्मशालाए बनी हुई है तथा मंदिर में जाने का मुख्य मार्ग भी गुर्जर धर्मशाला के मध्य में से होकर जाता है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर दो सिंह प्रतिमाये बनी हुई है तथा प्रवेश हेतु नीचे जाती सीढ़ियों पर द्वार बना हुवा है। मंदिर प्रांगण मुख्य मंदिर के अलावा तीन प्राचीन शिव मंदिर बने हुवे है जिसमे सीढ़ियों के नीचे उतरते ही दिखाई देने वाले प्राचीन शिव मंदिर के गर्भ गृह की बाहरी दीवारों पर कल्याण सुन्दर,स्थानक सूर्यदेव तथा नटेश्वर शिव की सुन्दर मुर्तिया शिल्पांकित है हालांकि सभी मूर्तियों पर चुना पोत दिया गया है।
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इस मंदिर के समीप ही मंडप में प्राचीन सहस्त्रलिंग स्थापित है जिसके सामने नदी की प्रतिमा है। पास में एक प्राचीन गर्भगृह बना हुवा है जिसमे क्रमश जीर्णोधार किये गए शिविलिंग स्थापित है।वर्तमान में जोगनिया माता का मूल मंदिर पूरी तरह से नया बनाया जा रहा है काली माता ,लक्ष्मी माता और सरस्वती माता की मूल मुर्तिया यथावत है। सम्पूर्ण मंदिर में मुर्गे ही मुर्गे दिखाई देते है जो यहाँ की स्थानीय मान्यता के अनुसार कार्यसिद्धि होने, मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओ द्वारा भेट स्वरूप मंदिर को मुर्गे अर्पित किये जाने की परम्परा के कारण है।
जोगनिया माता मंदिर के बाहर भी दो शैव मंदिर निर्मित है जिसमे से एक अत्यंत ही प्राचीन प्रतीत होता है जिसके बाहर एक त्रिशूल गढा हुवा है। जोगनिया माता के चारो तरफ फैले शैव मंदिरों को देखकर प्रतीत होता है की पूर्व में यहाँ शैव मंदिर ही रहे होंगे योगिनी अथवा शाक्त पूजन की परम्परा बाद में प्रारम्भ हुई होगी| कुछ मंदिर संभवत चौहानों के काल से पूर्व के है और संभवत प्रतिहार् कालीन है।
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मेनाल के पीछे की तरफ तक़रीबन 5-6 किलोमीटर दूर स्थित जोगनिया माता मंदिर उपरमाल के पठार पर स्थित है तथा चारो तरफ से घने वन से आच्छादित है वर्षा ऋतू में मंदिर से नीचे 100 फूट गहरे दर्रे में झरना गिरता है और बरसाती नदी बहती है और आने वाले पर्यटकों के लिए ये क्षेत्र प्रमुख पिकनिक स्पॉट के रूप में तब्दील हो जाता है।
फिर से कहना चाहूँगा की अगर बारिश के दिनों में चित्तौड़ नहीं देखा तो फिर आपने क्या देखा? बारिश के दिनों में चित्तौडगढ में अनेको जल प्रपात और मुख्यत मेनाल, जोगनिया माता मंदिर, बिजोलिया, तिलस्मा महादेव, बिंगोद संगम, भैसरोड़गढ़, बाडोली के मंदिर, मांडलगढ़ जरुर पधारें।
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