जब भी घूमने-फिरने की बात हो तो अधिकतर लोगों के सामने वही कुछ गिने चुने नाम ही दिखते हैं। मैं भी अधिकतर इन जगहों पर कई बार जा चुका था। अब तो ये जगहें भी अपने शहर जितनी ही जानी-पहचानी लगती हैं। चलते हैं एक ऑफबीट डेस्टिनेशन मुक्तेश्वर जहां से लौटने का मन किसी का नहीं करता। बता रहे हैं पंकज घिल्डियाल
मैं और मेरा दोस्त दोनों बहुत घुमक्कड़ी हैं और दोनों को ही ड्राइविंग और फोटोग्राफी का जबर्दस्त क्रेज। ऐसे कई मौके आए हैं, जब रात 12 बजे हमारी बात हुई और अगले दिन 5 सुबह हमने दिल्ली छोड़ दी। न कोई बुकिंग न कोई खास तैयारी। लॉकडाउन में सभी की तरह हम भी उकता चुके थे। बातों ही बातों में मुक्तेश्वर का जिक्र आया और बस यही हिल स्टेशन तय हो गया। मजे-मजे से हम आगे बढ़ते जा रहे थे।
मुरादाबाद के करीब जहां हम ब्रेकफास्ट के लिए तो तो याद आया कि भई हम आज ठहरेंगे कहां। चाय की चुस्की और गरमागरम परांठों की पेट पूजा करते हुए अपने थाली बगल में सरकाई और गूगल बाबा से सवाल किया। यहां सभी रिव्यू एक सरकारी होटल केएमवीएन की ही ओर इशारा कर रहे थे। फोन करने पर कि ठहरने के लिए जगह है तो बुकिंग करवाने में देर नहीं लगाई। अगर जगह नहीं भी मिलती तो चिंता वाली बात नहीं थी हम दोनों घुमक्कड़िकयों को गाड़ी में रात काटने का अनुभव भी है। वो किस्सा किसी ओर दिन। गूगल ने रास्ता दिखाया हम उसी तरफ बढ़ते चले गए। काशीपुर और नैनीताल होते हुए दोपहर तक कूदते-फांदते 350 किमी. नापकर मुक्तेश्वर पहंुच गए। मुक्तेश्वर शिव का धाम है। गजब की शांति। अगर जहां बैठों वहीं ध्यान लग जाए। अगर आपको मेडिटेशन करना अच्छा लगता है तो यह डेस्टिनेशन आपके लिए ही है। रास्ते भर रंग-बिरंगे देशी विदेशी पक्षिओं की मधुर आवाज, किसी भी दूसरे संगीत से बढ़कर लग रही थी। होटल में चेक इन कर अपने-अपने बैग पटकर बाहर आ गए।
अब कैफेटेरिया में एक-एक कॉफी हम तरोताजा हो चुके थे। जहां हम ठहरे थे उसकी लोकेशन इतनी शानदार है कि अगर आप कहीं भी न जाओ तो 2 दिन यहां आराम से बिता सकते हो। कपल के लिए तो यह जगह बेहद रोमांटिक और खास है। हाथ में चाय की प्याली और गरमारम पकोड़े, ठंडी-ठंडी हवा और सामने हिमालय दर्शन। बहरहाल हम लोग जिस दिन यहां पहुंचे थे उस दिन पर्वत श्रृंखलाओं को बादलों ने घेर रखा था।
माना जाता है कि नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर धाम इस जिले का सबसे ऊंचा स्थान है। मुक्तेश्वर में अगर बहुत से प्वॉइंट गिनने की चाह में पहुंचगे तो शायद आप निराश होंगे। दरअसल यह जगह प्रकृति को करीब से महसूस करने की है। एकदम शांत जगह। दूर कोई आवाज देता है तो आवाज गूंजते हुए आपके कानों में भी पहुंच ही जाती है। ध्यान से सुनेंगे तो हर पक्षी की अलग-अलग मंत्रमुग्ध करने वाली आवाज को सुन सकेंगे और हर बार एकदम नई चहचाहट।
मुक्तेश्वर धाम नाम पड़ने की वजह है यहां का शिव मंदिर। होटल से निकलकर हम जैसे ही करीब 300 मीटर आगे बढ़े तो मंदिर पहुंचने का छोटा रास्ता दिखाई दिया। क्योंकि यहां से नजारे अच्छे दिखते और फोटोग्राफी का भी मजा आता तो हम भी वहीं से ऊपर बढ़ गए। हमें एक साथ 100 से ज्यादा सीढ़िया चढ़ने की आदत नहीं थी तो हम हांफते हुए आखिर पहुंच ही गए। माना जाता है कि शिव के कुछ प्रमुख मंदिरों में मुक्तेश्वर धाम की गिनती होती है। यह स्थान इतनी ऊंचाई में ही आसपास के छोटे-बड़े अद्भुत दृश्य देखते ही बनते हैं।
भले ही आप धार्मिक न भी हों, मंदिर के आसपास यहां घंटों बिता सकते हैं। पूछने पर किसी ने बताया कि पास में ही चौली की जाली है, जहां अकसर पर्यटक फोटा खिंचवाते नजर आएंगे। मंदिर से नीचे उतर कर दाईं ओर चौली की जाली है। वहीं कुछ लोग पहाड़ी रसीले फल बेच रहे थे, जो स्वाद में एकदम ताजा थे। फल भले ही आड़ू, सेब, संतरा आदि थे, मगर मगर स्वाद शहरों में पहुंचे पैक्ड फलों एकदम अलग। हमने कुछ पैक करवाए और खाते-खाते चौली की जाली पहंुच गए। अचानक बारिश का माहौल बन आया हम जैसे ही 500 मीटर चल ही थे और वहां पहुंचे तो झमाझम बारिश होने लगी।
लोगों ने बताया कि यहां सूर्यास्त बेहद खूबसूरत होता है। दोपहर हो चुकी थी हम वापस लंच के लिए होटल पहुंचे। कुछ देर आराम करने के बाद हम आसपास ही टहलते रहे। बाहर निकलते ही छोटी सी सड़क में दूर तक चलते रहना बहुत ही आनंददायक था। गहरी संासे लेकर मानों हम अधिक से अधिक ऑक्सीजन अपने फेफड़ों तक पहुंचा रहे थे। रिजॉर्ट के समाने काफी खुली जगह है। सूर्यास्त के समय पहाड़ों की पीछे ललिमा को देखना उसकी फोटोग्राफी में बहुत मजा आया। नवंबर का समय था तो ठंड काफी बढ़ चुकी थी। अंधेरा होते ही हम लौट आए। उस रात काफी तेज बारिश हुई। आसापास टिन के शेड बहुत शोर कर रहे थे। पहाड़ों में बारिश की आवाज कुछ अलग सुनाई देती है। भले ही बारिश कम हो रही है, मगर आपको लगेगा मूसलाधार हो रही है। सुबह जागे तो देखा कि मौसम एकदम साफ हो हो चुका था। हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां भी बादलों से आंख मिचोली करती हुई दिखने लगी, जिन्हें हम पिछली शाम नहीं देख पा रहे थे।
हम लोग देर से जागे तो सूर्योदय देखने से चूक गए। आज के कार्यक्रम में हमारा लोकल मार्केट और चौली की जाली में सनसेट देखना शामिल था। सारा दिन हम न जाने छोटी-छोटी पगडंडियो से होते हुए दूर कहीं निकल चुके थे। ऐसी पहाड़ी जगहों पर भी जहां न रास्ते थे न ही कोई आ रहा था। कई जगहों पर फिसलते, गिरते लुड़कते हुए हम काफी दूर आ चुके थे। छोटे-छोटे पहाड़ी बच्चों से मैंने उन्हीं की भाषा में पूछा कि आगे ये रास्ता किसी रोड पर निकलता है तो बताया उसने मासूम से मुस्कान के साथ नीचे जाने को कहा। क्योंकि ऊपर चढ़ाई में जाने की हिम्मत नहीं थी। ट्रेकिंग करते हुए करीब 1 घंटे में किसी मेन रोड पर पहुंचे। हम मेन मुक्तेश्वर से काफी दूर आ चुके थे। वापस आने के लिए हमें टैक्सी का सहारा लेना पड़ा। अब हमारा अगला डेस्टिनेशन था सनसेट देखना। हम पांच बजे के आसापास चौली की जाली पहुंचे। सनसेट होने ही वाला था कि बादलों ने सूरज को पूरा ढक लिया। कुछ सेकंड्स के लिए बादलों ने जो दृश्य प्रकृति रूप से बनाया मानों साक्षत भालेनाथ ने दर्शन दे दिए हों। इनसेट में आप वही तस्वीर देख भी सकते हैं जो समय रहते क्लिक कर दी। यहां पास में ही चौली की जाली चट्टान है। मान्यता है कि यदि शिवरात्रि के दिन संतान सुख की कामना के साथ कोई महिला इस पत्थर पर बने छेद को पार करती है तो उसे अवश्य ही संतान सुख मिलता है। हमने पास ही खड़े एक स्थानीय बुजुर्ग से जब पूछा तो उन्होंने बताया कि हां ऐसे कई उदाहरण हैं जब विवाह के आठ से दस साल बीतने के बाद उन्हें संतान सुख मिला।
महिलाएं यहां शिवरात्रि के एक दिन पूर्व मुक्तेश्वर महादेव के मंदिर में पूजा अर्चना कराती हैं और शिवरात्रि के दिन ‘चौली की जाली’ में पहुंचकर सच्चे मन से संतान प्राप्ति की कामना करते हुए पत्थर पर बने छेद को पार किया । पहाड़ों हर जगह मैगी प्वॉइंट अधिक दिखने लगें हैं। खैर हमने हलका स्नैक्स लेकर फोटाग्राफी का आनंद लिया और वापस होटल पहुंच अगले दिन दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
कैसे पहुंचे : मुक्तेश्वर महादेव मंदिर , पंतनगर से 100 किमी दूर निकटतम हवाई अड्डा।
मुक्तेश्वर काठगोदाम से करीब 72 किमी दूर का निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन से मुक्तेश्वर तक 2 घंटे की ड्राइव है |
आप सड़क से नैनीताल (51 किमी) या हल्द्वानी (72 किमी) से मुक्तेश्वर पहुंच सकते हैं।
टिप्स
-यहां के लिए 2 दिन का समय पर्याप्त है।
-दिल्ली से सुबह जल्दी निकलकर 12 बजे तक यहां पहुंचा जा सकता है।
-सरकारी होटल केएमवीएन में ठहरना सबसे बेहतर है।
-सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद लें।