वाराणसी के बाद अगला पड़ाव इलाहाबाद ओह्ह प्रयागराज पहुँचा। कुम्भ खत्म हुए करीब सप्ताह भर हो चुका था। भीड़ भाड़ भी कम हो गई थी। अस्थायी इंतजाम हटाये जा रहे थे। बड़े हनुमान मंदिर से होते हुए संगम तक पैदल ही पहुँचा। मेरा एक पुराना साथी अशोक प्रजापति यहीं रहता है। उसे फ़ोन किया तो वो मिलने आ गया। उसके आने से पहले गंगा-यमुना संगम पर स्नान किया। कहते है यहीं पर अदृश्य रूप से सरस्वती नदी भी मिलती है। बहुत से लोग यहाँ पाप धोने आते है। नहाते हुए ये भी डर लग रहा था कि अपने छुड़ाने के चक्कर में दूसरों के छोड़े हुए ना चिपक जाए।
सुरक्षा के हिसाब से अच्छे इंतजाम थे। नदी में बालू रेत बहुत अंदर तक फैली हुई थी। वाहन फंस ना जाये इसलिए लोहे की चादरें रास्तों पर बिछाई गई थी। नदी किनारे बालू रेत बोरियों में भरकर अस्थायी घाट बनाये गए थे। गंगा नदी साफ होने की जो फोटोशॉप्ड तस्वीरें सोशल मीडिया में घूम रही है वो फेक है। नदी में अब भी बहुत कचरा है और पानी भी साफ नहीं है। गंगा सफाई में अभी बहुत काम होना बाकी है। कुछ चल भी रहे है तो धीमी गति से। गंगा नदी की तुलना में नर्मदा नदी अब भी बहुत साफ है और पानी बिना फ़िल्टर किये भी पीने लायक है।
यूपी में नाश्ते में कचोरी-आलू की सब्जी, पूरी भाजी, पराँठे बहुत खाये जाते है। लेकिन एक चीज जो देखी वो थी ब्रेड बटर या बटर पाव। हर चाय की दुकान या ठेले पर अमूल बटर पाव के साथ सिर्फ 12 से 20 रुपये में मिल जाता है। चाय अमूमन कोयले वाली भट्टी या सिगड़ी पर ही बनती है। पाव को बीच से काट कर कोयले की अंगार पर सेंक लिया जाता है। उस पर अमूल बटर लगाकर गर्म करके सेंधा नमक लगाकर सर्व करते है। यही सबसे सस्ता और सुलभ नाश्ता लगा।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का घर आनंद भवन और स्वराज भवन नहीं जा पाया इसका दुख है। अगली बार जाना हुआ तो जरूर जाऊँगा। ये दोनों भवन पंडित नेहरू ने देश को समर्पित कर दिए थे।
- कपिल कुमार