उत्तराखंड की चमचमाती नदियाँ जो मुख्यतः हीरे की तरह झिलमिलाते ग्लेशियरों से निकलकर अपने भारी भरकम प्रभाव से इस राज्य को और भी अधिक रमणीय, आश्चर्यजनक और पवित्र बनाती हैं। उत्तराखंड को भारत में दो सबसे पवित्र नदियों गंगा और यमुना का जन्मस्थल कहा जाता है। इनके उद्गम स्थलो गंगोत्री और यमुनोत्री को देश में सबसे अधिक पवित्र माना जाता है। इसके साथ ही कई सारी नदियां है जो पारिस्थितिक, पर्यटन और धार्मिक रूप से जितनी आवश्यक हैं, टूरिस्ट के लिहाज से उतनी ही सुंदर भी। आइए जानें इनमे से 10 नदियों और उन्हें निहारने के स्थानों के बारे में-
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मंदाकिनी केदार घाटी के चोराबारी ग्लेसियर से निकलकर केदारनाथ मंदिर के लिए जाने वाले पैदल मार्ग (केदारनाथ ट्रेक) के साथ साथ चलती है। यह ट्रेक आपको जमीन और पानी के अलग अलग स्वभाव के बावजूद फलने फूलने के लिए प्रकृति के सबको एक होने के नियम को सिखाते हुए शिव का आशीर्वाद और मंदाकिनी को देखने का सबसे अच्छा अवसर प्रदान कराता है। 80 किमी की अपनी यात्रा में ये जलधारा करीबन 2200 मीटर की खड़ी गहराई नीचे उतर कर आती है और रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ से आती हुई अलकनंदा में मिल जाती है। तेज वेग से बहती मंदाकिनी को इस मार्ग पर जरूर देखें और अगर आप राफ्टिंग क्याकिंग आदि के शौकीन हैं तो वो भी कर सकते हैं।
2.👇
अलकनंदा नदी 195 किमी के अपने सफर में सतोपंथ और भागीरथी खरक ग्लेशियर के संगम से निकल, माना में सरस्वती नदी को अपने में लीन करती हुई बद्रीनाथ - विष्णुप्रयाग - कर्णप्रयाग होते हुए रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी को समाहित कर जब चौपाडा (बागवान लागा, रुद्रप्रयाग से श्रीनगर के बीच) पहुंचती है तब यहां अलकनंदा रिवर बीच नामक जगह पर इसको शांत औऱ प्राकृतिक वातावरण में लोगों की भीड़ से दूर देखने का मौका आपको मिलेगा। इसके बाद देवप्रयाग में दो अलग अलग रंगों की जलधारायें यानी गंगोत्री से आती हरे रंग की भागीरथी और बद्रीनाथ से चट्टानों को चूरा करती अपने साथ बहाती हुई मटमैले रंग की अलकनंदा जब एक दूसरे से मिलती है तो बन जाती है माँ गंगा। यकीन मानिये ये भावविभोर कर देने वाला सजीव चित्र प्रस्तुत करती हैं।
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भागीरथी नदी गंगोत्री ग्लेशियर के गौमुख से निकलकर करीबन 200 किमी का सफर तय करके देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा बन जाती है। एक गौमुख से होता इसका उद्गम और दूसरा देवप्रयाग में अलकनंदा में होता इसका संगम, ये दोनों स्थान भागीरथी को देखने के लिए सबसे अच्छे हैं। गौमुख के लिए आपको ट्रेक करना होगा, देवप्रयाग तक गाड़ियां बहुत आराम से जाती हैं।
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धौलीगंगा नदी, देववन ग्लेशियर (नीति पास) चमोली मे 5000 मीटर की ऊंचाई से निकलकर करीबन 95 किमी का पहाड़ी सफर तय करके नंदा देवी नैशनल पार्क से होते हुए विष्णुप्रयाग, जोशीमठ पहुंचती है। इस दौरान रैनी नाम की जगह पर धौली गंगा में ऋषि गंगा नदी का संगम होता है और एक शानदार नजारा आपके सामने होता है।
चमोली के ही तपोवन में कुदरती गर्म पानी के श्रोतों के साथ यहां धौलीगंगा को देखना बहुत अच्छा लगता है। इसके अतिरिक्त धौलीगंगा को निहारने के लिए विष्णुप्रयाग जाएं और अलकनंदा में समाहित होती हुई धौलीगंगा नदी को देखते हुए प्रकृति का धन्यवाद करें।
5.👇
पिंडर नदी, बागेश्वर जिले में स्थित पिंडारि ग्लेशियर से करीबन 3800 मीटर की ऊंचाई से निकल लगभग 2500 मीटर नीचे, 105 किमी का सफर तय करती हुई कर्णप्रयाग पहुंचकर अलकनंदा में समाहित हो जाती है। इस नदी को देखने के लिए कर्णप्रयाग जाएं वहाँ आपको पिंडर नदी संगम में मिलने से पहले बहुत ही खूबसूरत दृश्य दिखाती है. पिंडार ग्लेशियर के ट्रेक पर जाने वाले लोग इसका अद्भुत मूलभूत रूप भी उद्गम स्थल पर देख सकते है।
6.👇
काली गंगा/शारदा नदी- कालापानी, लिपुलेख दर्रे से निकलकर इंडो - नेपाल बॉर्डर के साथ-साथ बहती हुई टनकपुर से मैदानों में उतर जाती है। काली नदी अपने बहाव के शुरुआती कोर्स में कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के बिल्कुल साथ साथ चलती है जो काली नदी को प्राकृतिक माहौल में देखने का सबसे अच्छा अवसर होता है। आगे चलने पर जौलजीबी में कालीगंगा में गौरीगंगा नदी समाकर विहंगम दृश्य दिखाती है।
पिथौरागढ से लेकर नीचे टनकपुर तक ये नदी राफ्टिंग और क्याकिंग के लिये बहुत अनुकूल है इसलिए आप यहां आकार वाटर स्पोर्ट्स का आनंद ले और काली नदी को जी भर के देखें।
7.👇
सरस्वती नदी, इसके नाम से कंफ्यूज मत हों, यह (अब खो चुकी) पौराणिक सरस्वती नदी नहीं है बल्कि बद्रीनाथ के माना गांव से अलकनंदा की सहयोगी नदी सरस्वती निकलती है, जो नजदीक ही केशवप्रयाग में अलकनंदा नदी में समाहित हो खो जाती है. इसको देखने के लिए माना गांव में भीम पुल जाएं, जोकि पत्थर का बना एक प्राकृतिक पुल है. ये सरस्वती नदी इसी पुल के नीचे से बहते हुए कुछ दूर जाकर खो जाती है. इस भीम पुल से ही सतोपंथ झील और वसुंधरा जलप्रपात का रास्ता जाता है। भीम पुल इसको देखने का सबसे अच्छा स्थान है. सरस्वती नदी का उद्गम स्थल भी इसे देखने का बहुत बढ़िया स्पॉट है.
8.👇
रामगंगा नदी समुद्रतल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर लोभा गांव से निकल कई सारे छोटे - बड़े झरने बनाते हुए, 150 किमी का रास्ता तय करती हुई जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क से होते हुए मैदानों में उतर जाती है, यहीं कॉर्बेट में आप रामगंगा नदी को सबसे बेहतर तरीके से देख सकते है.
9.👇
टोंस, यमुना नदी की सबसे बड़ी सदानीरा सहायक नदी है जो खुद यमुना से ज्यादा जल यमुना को प्रदान करती है। गढ़वाल क्षेत्र के बंदरपूंछ पर्वत से निकलकर तेजी से 150 किमी तक बहकर हिमाचल से गुज़रते हुए वापस उत्तराखंड में पांवटा साहिब के पास से होते हुए दून वैली (कलसी) में यमुना में गिर जाती है। रुपिन और सुपिन नामक जलधाराओं के नैतवार नाम की जगह पर मिलने से आगे इसे टोंस नदी कहा जाता है। यह नज़ारा बहुत ही खूबसूरत होता है।
10.👇
नंदाकिनी नदी नंदादेवी पर्वत के निचले ग्लेशियरो से निकलकर नंदप्रयाग में अलकनंदा में लीन हो जाती है। यहां इसके नैसर्गिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए चाय पीजिए, खो जाइए कुदरत में !!
गंगा और यमुना उत्तराखंड की दो ऐसी नदियां हैं जिनके बारे में इनके धार्मिक महत्व के कारण व्यापक तौर से लोगों को जानकारी पहले से ही है. गंगा को देखने के लिए हर की पैड़ी(हरिद्वार) या त्रिवेणी घाट (ऋषिकेश) पर होने वाली आरती में शामिल होइए कभी ना भूलने वाला अनुभव प्राप्त होगा. यमुना जी को देखना है तो यमुनोत्री आइए और इस पावन नदी को इसके नैसर्गिक वातावरण मे निहारते हुए बस खो जाइए. अगर आप भी ऐसी जगहों के बारे मे जानते हैं तो कमेंट बॉक्स में बताएं.
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