पुष्कर मेला, किसी ने इसके बारे मे सही ही कहाँ है की इस मेले मे सभी प्रकार के रंगो से आपकी मुलाक़ात हो ही जाती है । पुष्कर की सबसे खास बात यहाँ का माहौल है, लाखो की भीड़ होते हुए भी एक सुकून भरी शांति है, एक ठहराव है यहाँ, अगर कोई मुझसे बोल दे की मुझे हमेशा यही रहना है तो शायद मे मान ही जाऊंगा ।
हर्षिता और मैंने सोच रखा था की इस बार पुष्कर मेले का ट्रिप बनाएँगे और हमारे इस इरादे को और ज्यादा मजबूत किया किशन ने, जो की हमारा भाई, दोस्त और टीम का बहुत ज्यादा म्हत्वपूर्ण पार्ट है । वह खुद भी अपने दोस्तो के साथ बंगलौर से पुष्कर आ रहा था मेले के लिए तो फिर तो हमे जाना ही था ।
पुष्कर का माहौल तो वैसे हमेशा ही शानदार होता है पर जब मेला आता है तब पुष्कर की रंगत देखते ही बनती है । सजे हुए बाजार, पशु मेले मे एक से एक ऊंट और घोड़े, पुष्कर की आरती और पुष्कर की गलियों मे देश विदेश से आए हुए फॉटोग्राफर व सैलानी । पुष्कर मेले के समय पुष्कर एक पूरे नए अवतार मे आ जाता है ।
तो हम 8 लोग रवाना हुए पुष्कर मेले के लिए जिसमे से कोई बस से आया था और कोई बाइक से । जिनमे थे मैं (सारांश ) हर्षिता , अमित जी नरुका जिनहे हम नरुका जी कहते है , पीयूष भाई जिसे हम प्यारे से चोटू कहते है , तक्षय भाई , कपिल भाई और आशीष और अक्षय जिनहोने हमारी बहुत हेल्प की थी पर उसकी कहानी फिर कभी । तो पुष्कर मे मेरे दो घर है, एक है Hostelavi Pushkar और एक है Moustache Pushkar । इस बार मे अपने ग्रुप के साथ रुका Hostelavi Pushkar मे जिसे की पुर्णिमाँ संचालित करती है ।
हम लोग पुष्कर सुबह 4 बजे पहुंचे और पुर्णिमा की नींद खराब की और उसने हमे अपने अपने टेंट्स दिखाये और जो की अगले दो दिन तक हमारा घर होने वाले थे । टेंट्स मे रहना हमेशा ही नया अनुभव देता है । जब हम सुबह उठे तो देखा की सूरज देवता बादलों के पीछे से हल्का हल्का झांक रहे थे । सबने प्लान बनाया की सबसे पहले तो चाय पी जाये और मार्केट घूम कर आया जाए तो हमने हॉस्टल मे ही नाश्ता किया और निकल पड़े पुष्कर की जान इसके मार्केट की तरफ । वहाँ पर हम ब्रम्हा मंदिर गए और वापसी मे हम गए अपने दूसरे घर Moustache Pushkar मे, जिसे वैभव भैया संचालित करते है, वहाँ हम भैया से मिले, कुछ फोटोस ली और साथ ही साथ सबने साथ बैठ कर चाय पी ।
वहाँ से विदा लेने के बाद हम सब लोगो ने अपने हॉस्टल की तरफ रुख किया और खाना खाकर सब लोग बाते करने मे लगे तो पता ही नहीं चला की शाम कब हो गयी, अब वक़्त था किशन से मिलने और पुष्कर के घाट पर होने वाली आरती देखने का । आप चाहे मानो या ना मानो अगर आप वहाँ बैठ कर आरती देख और सुन रहे है तो वह आरती आपको एक अलग ही दुनिया मे ले जाती है, जिसने उस आरती के दर्शन किए है यह वह ही जानता है । वहाँ से हम लोग मेले ग्राउंड की तरफ गए और मेले को देख कर फिर से हॉस्टल की तरफ रुख किया और वही किशन को भी बुला लिया ताकि खाना साथ खा सके । खाना खाने के बाद जलती आग के पास बैठ कर साय बिताया और फिर सब सोने के लिए चले गए ।
अगले दिन सुबह जल्दी उठे और इसका पूरा पूरा श्रेय जाता है अमित जी नरुका बच्चन को , और निकल पड़े गायत्री माता मंदिर के लिए क्योकि हम जब भी पुष्कर मे होते है तो सूर्योदय वही से देखते है, एक अलग ही सुकून है वहाँ पर, कम लोग पर ज्यादा शांति । हल्की हल्की ठंड और सामने पहाड़ो के पीछे से उगता हुआ सूरज । सूरज उगने के बाद हमने यहाँ चाय पी पर पीयूष को चाय वाले को देखकर अच्छी फीलिंग नहीं आई तो उसने नहीं पी।
यहाँ से फ्री होते है सब निकले हॉस्टल के लिए पर मैं हर्षिता और नरुका जी निकल पड़े प्रवीण भैया से मिलने जो की हमारे सबके बड़े भाई और परिंदों का सफर के सबसे पुराने टीममेट्स मे से एक है । भैया के साथ घूमते हुए हमने खाये पुष्कर के फेमस मालपूए और रबड़ी जिसका स्वाद आज भी सबको याद है, खाते ही जीवन मे स्वाद घुल गया था हमारे ।
वापस आने के बाद हम लोगो ने थोड़ा रेस्ट किया और निकले रेगिस्तान की तरफ ताकि वहाँ से ढलते सूरज के दर्शन कर सके । वहाँ पर काफी चिजे हो रही थी जैसे केमल सफारी, गाड़ियों से ऑफरोडिंग, फोटोग्राफी और भी काफी कुछ हम लोगो ने वहाँ कुछ फोटोस लिए, सनसेट देखा और वापस आ गए हमारे हॉस्टल की तरफ ।
वैसे तो हमारा निकलना इसी रात को तय था पर हम इतना थक गए थे की हमने सोचा की अब तो सुबह ही निकलेंगे और हम ऐसा सोये की सुबह 5 बजे उठना था और हम सुबह 7 बजे उठे और जल्दी से निकले और कोटा के लिए और फिर हम रुके सरवाड़ मे । यहाँ हमे नाश्ता करना था और हमारा नाश्ता था दाल बाटी । सरवाड़ की दाल बाटी की हमे याद वैसे भी बहुत दिनो से आ रही थी तो सबने नाश्ते की जगह लंच ही कर लिया और वापिस कोटा के लिए निकल पड़े ।
पर हमारे ट्रिप की सबसे अच्छी चीज़ हमे दिखी और वही थी सैंडबोआ, जिसके बारे मे यह भ्रांति है की उसके दो सिर होते है जिसे दो सर वाला वाला साँप भी कहते है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है उसके एक ही सर होता है पर पुंछ का आकार ऐसा होता है की वह उसका दूसरा सर कहते है । हमने उसको रोड क्रॉस करते हुए देखा और हम वापिस निकल पड़े अपने घर कोटा की तरफ ।