Street foods of Varanasi by Harry Harshit Singh

Tripoto
27th Jul 2020
Photo of Street foods of Varanasi by Harry Harshit Singh by Harry Harshit Singh

हेलो दोस्तो  मेरा नाम हर्षित सिंह है मैं एक हिंदी और इंग्लिश ट्रेवल एंड फ़ूड ब्लॉगर हु मैं जौनपुर उत्तर प्रदेश से हु, पिछले ब्लॉग में आप लोगों का बहुत प्यार  और स्नेह मिला जिसके लिए मैं आप सबका बहुत आभारी हूं, दोस्तो आज मैं आपको वाराणसी के प्रसिद्ध स्ट्रीट फूड के बारे में में बताने जा रहा हु। जैसा कि पिछले ब्लॉग में  अपने देखा कि आप वाराणसी में सबसे चीप यात्रा कैसे कर सकते है , आप क्या देख सकते है , सस्ते होटल और रेस्टोरेंट के बारे में , तो देर ना करते हुए हम अपने आज के ब्लॉग पे आते है

1- कचौड़ी जलेबी

अगर मंगल ग्रह से उठाकर आपको कोई सीधे धरती पर फेंक दे..और आप सीधे एक ऐसे चौराहे पर गिरें
जहाँ सुबह सवा छह बजे ही कचौड़ी-जलेबी खाने के लिए लोग लाइन में खड़े हों तो बिना हिला-हवाली के समझ लीजियेगा की आप बनारस में हैं।

जहां हर चौराहे पर एक कचौड़ी और जलेबी की दुकान है।

प्रसिद्धि की बात करें तो लँका स्थित चाची की कचौड़ी प्रसिद्ध है..जहां कभी अस्सी वर्षीया चाची खाने वाले को सब्जी और जलेबी के साथ चार गाली फ़्री में देतीं थीं और लोग भी खाकर धन्य होते थे।

आप हंसेंगे और पूछेंगे…अच्छा सच मे ऐसा होता था..? गाली भी। तो जी सर..बड़े-बड़े लाट साहबों को चाची के मुंह से गाली खाते मैनें ही सुना है।

इसे बनारस की तहजीब कहना ज्यादा उचित होगा।

चाची की दुकान लँका चौराहे पर ठीक वहाँ है जहाँ आप ठीक से खड़े नहीं हो सकते लेकिन बड़े-बड़े वीआईपी लोग हाथों में पत्तल और दोना लेकर अपनी बारी का इंतजार करतें हैं।

इसके अलावा भी आप गोदौलिया चौराहे के आस-पास किसी भी दुकान से कचौड़ी-जलेबी का आनंद ले सकते हैं।

2- लस्सी

कचौड़ी जलेबी को अगर बनारस की आत्मा कहा जाए तो लस्सी को किडनी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।

कुल्हड़ वाली लस्सी में रबड़ी मिलाकर उपर से जब गुलाब जल और केसर का छिड़काव किया जाता है,और महादेव का नाम लेकर जब गटका जाता तब एहसास होता है कि हं भगवान ने हमें इंसान बनाकर कम एहसान नहीं किया है।

लस्सी शास्त्र पर जितना लिखा जाए कम होगा..फिर कभी।

हाँ- गोदौलिया में दर्जनों लस्सी की दुकानें हैं..वहीं लँका स्थित पहलवान की दुकान की लस्सी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां एक ही जगह आप,एक ही नाम से कई लस्सी की दुकानें देख सकतें हैं और उसका आनंद ले सकतें हैं।

3- चाट

यूँ तो चाट हर जगह उपलब्ध हो जाता है..आप जहां भी जाएं आपको गोलगप्पा और चाट आराम से मिल जाता है..लेकिन बनारस में गुरु कुछ ऐसे ठिकाने हैं,जहां चाट खाने और खिलाने के लिये मनोहर बो अपने मनोहर का दिमाग चाट कर दही कर देतीं हैं।

बनारस में चाट की दो दुकानें बहुत प्रसिद्ध हैं। पहला है गोदौलिया स्थित काशी चाट भंडार और दूसरा है लक्सा स्थित पीडीआर मॉल के करीब दीना चाट भंडार ..दोनों दुकानें पचासों साल पुरानी हैं,और दोनों की अपनी-अपनी चाट बनाने की वो खूबियां भी पुरानी हैं जो जीभ को बुरी तरह से व्याकुल कर देने का सामर्थ्य रखती हैं।

टमाटर चाट में धनिया,अदरक,जीरा मसाला,देशी घी,चाशनी,नींबू,धनिया पत्ता,नमकीन,टमाटर का रस,पोस्ता दाना और काजू मिलाकर तैयार किया जाता है..और जब मुंह में ले जाया जाता है तब पता चलता है कि ज़िंदगी का असली मज़ा चाट में है।

बस ध्यान रखें कि शाम के समय यानी छह से नौ बजे के आस-पास यहाँ पर्याप्त भीड़ होती है। इसलिए समय निकालकर इत्मीनान से जाएं।

4- पान

पान का कहना ही क्या..पान के बारे में दुनिया जानती है..लेकिन ये नहीं जानती है कि सुबह उठकर एक पान मुंह में दबाकर जब तक अमरीका,ब्रिटेन की ऐसी की तैशी न कि जाए बनारस में मिज़ाज बनता ही नहीं है।

कुछ तो ऐसे धुरंधर पान खवईया हैं कि उनको देखकर भगवान भी एक बार मुंह के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर विचार करें।

बहरहाल आप पान खाना हो तो यूँ तो कहीं भी खा सकते हैं लेकिन केशव पान भंडार लँका ज्यादा प्रसिद्ध है। गोदौलिया में आप हैं तो फिर वहाँ आपको बढ़िया पान खाने के लिए विश्वनाथ गली में दीपक ताम्बूल भंडार या फिर गोदौलिया में गामा पान वाले के यहाँ जाना होगा।

जहाँ एक बार में डेढ़-डेढ़,दो-दो सौ पान बंधवा कर ले जाते हैं। और दिल्ली हों या देहरादून पान घुलाकर महादेव के साथ भोसड़ी के कहते हुए बनारस को अपने भीतर जिंदा रखते हैं।

5- भांग और ठंडई

इसके बिना क्या काशी की बात ही क्या.. यहां के बुजुर्गों ने कहा है कि काशी में स्नान,ध्यान,जलपान और पान के बाद जो काम बच जाता है..उसे भांग कहते हैं..जिसके कारण बनारस का शरीफ और जगहों के लंठ से दो किलो ज्यादा लंठ होता है।

अस्सी का गुरुओं और दशाश्वमेध के घण्टालों का मानना है कि हर आदमी को भांग जरूर लेना चाहिए..जो आदमी कहता है कि भांग से नशा होता है वो महा बौचट आदमी है.अरे! ये भी कोई नशा है। देखो तो ससुरा अमरीका वाला पी रहा,जापान वाला पी रहा..और इंग्लैंड वाला पीकर भोजपुरी और भोजपुरी वाला पीकर अंग्रेजी बोल रहा है।

फिर तो गुरु सुबह-शाम भांग छनाई शुरु हो जाती है..और कहते हैं इहाँ तरह-तरह से भांग छाना जाता है।कोई गोली बनाकर छानता है..तो कोई दूध के साथ लेना छानता है..तो कोई कसेरू नामक फल के साथ लेता है.

और कसेरू के साथ ले लेने पर मान लिया जाता है की “ई आदमी जवन है भाय. ई ससुरा बड़का रईस हौ”

भांग लेने के बाद जो बच जाते हैं कुछ शरीफ लोग..उनके लिए स्पेशल ठंडई की व्यवस्था भी है.

वो बनारसी ठंडई जो मिश्राम्बु नामक ब्रांड से आज देश दुनिया में फेमस हो चुकी है कि इसकी मांग इतनी ज्यादा हो जाती है कि लोग जाड़ा,गरमी बरसात पीते हैं..

जिसमें आमतौर पर तरबूजा,ककड़ी,खीरा,का बीज,गुलकंद,बादाम,काजू,काली मिर्च,सौंफ,पिस्ता, और तब गुरु उस पर से एकदम शुद्ध दूध डाला जाता है. और उसके बाद जब मिजाज में घोलकर गटका जाता है उसका जबाब नहीं होता है.

गोदौलिया चौराहे पर उतरते ही आपको दर्जनों ठंडई की दुकानें मिल जाएंगी। यहाँ आप किसी भी दुकान पर ठंडई का आनंद ले सकतें हैं।

6- वैसे तो मलइयो शीत ऋतू का पेय है जो साल के बस तीन महीने और दुनिया में सिर्फ बनारस में ही मिलता है..

मलइयो को बनाने की विधि भी बनारस की तरह कम अद्भुत नहीं है..

पहले कच्चे दूध को बड़े-बड़े कड़ाहों में खौलाया जाता है। फिर रात भर छत पर आसमान के नीचे रख कर ओस से स्नान कराया जाता है। रात भर ओस पडऩे के कारण इसमें गजब का झाग पैदा होता है।

सुबह कड़ाहे को उतारकर दूध को मथनी से मथा जाता है। फिर इसमें छोटी इलायची, केसर एवं मेवा डालकर फिर मथा जाता है। और तब गुरू दुकान पर रखकर ग्राहक को ललचाया जाता है।

गोदौलिया में मलइयो की दर्जनों दुकानें हैं,जहाँ आप अगर जाड़े में आते हैं तो आराम से इसका लुत्फ ले सकतें हैं।

This article written by Harry Harshit Singh

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