ऐसा सुनने-पढ़ने को मिलता है कि पश्चिम के देशों में भारत को लेकर कई भ्रांतियाँ थीं। इनमें एक ये कि यहाँ साँप ही साँप हैं, या यूँ कहें कि भारत सापों और सपेरों का देश है। इनमें कितनी सत्यता है, ये तो हम जानते ही हैं लेकिन इतना तो साफ है कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही लोग प्रकृति के निकट रहते आए हैं। पेड़-पौधे ही नहीं, बल्कि जीव-जंतुओं को भी ईश्वर से जोड़ते हुए उनके महत्व को समझते रहे हैं। साँपों की बात करें तो इसे भगवान शिव गले में धारण करते हैं। लिहाजा साँप को दूध पिलाने से लेकर पूजने तक के किस्से तो सुनने को मिल जाते हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित इस गाँव के लोग साँपों को ना केवल पनाह देते हैं बल्कि उन्हें पालते भी हैं!
आज के आधुनिक समय में लोग शौकिया तौर पर घरों में कुत्ते-बिल्ली पालते हैं लेकिन क्या कभी साँप पालने को लेकर भला कोई सोच भी सकता है! वाकई ये हैरान करने वाली बात है कि शेतफल गाँव के लोग जो साँप पालते हैं वो साधारण नहीं, बल्कि विषैले और खतरनाक होते हैं। कोबरा को देखते ही जहाँ लोग डर के मारे भाग खड़े होते हैं, शेतफल गाँव के निवासी बड़े आराम से उन्हें पालते हैं और इससे किसी को कोई खतरा भी नहीं होता है। यहाँ ये जानना दिलचस्प हो सकता है कि आखिर वे क्यों और किस प्रकार सांप को पालते हैं!
साँप को पूजते हैं, पनाह देते हैं!
देश के ज्यादातर भागों में देवस्थानों पर साँप देखना या होना शुभ माना जाता है। लेकिन इसे उतना ही खतरनाक और जानलेवा भी समझा जाता है। लिहाजा दूर से ही पूजने और देखने को लोग सुरक्षित समझते हैं। इसमें बुद्धिमानी भी है कि साँपों से सुरक्षित दूरी रखना बेहतर होता है। लेकिन क्या हो, जब साँप आपके घर का ही एक सदस्य हो! सुनने में ये बात भले ही बॉलीवुड के किसी टिपिकल फिल्म की कहानी लग रही हो लेकिन शेतफल गाँव में हर घर में साँप घर के सदस्य की तरह रहता है। घरों में साँप के लिए खोल या बिल बनाया जाता है जिसे देवस्थान कहते हैं।
अमूमन साँप देखते ही उसे मारने या दूर हटाने को लेकर लोग चीखने-चिल्लाने लगते हैं। लेकिन इस गाँव में साँप को आप ऐसे ही टहलते देख सकते हैं। लोग उसे कुछ नहीं कहते और बदले में साँप भी किसी का कुछ हानि नहीं करता है। घरों के अंदर, बाहर, गाँव की गलियों में या फिर बच्चों के स्कूल में साँप बेफिक्री से घूमते नज़र आते हैं। यहाँ साँप के साथ बच्चे खेलते दिख जाएँ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं! कहें तो ना लोगों को साँप से भय है और ना साँप को ही लोगों से कोई डर! यही बात इस गाँव को इतना ख़ास बनाती है कि दुनिया भर में इसे साँप के लिए सबसे सुरक्षित जगह के रूप में जाना जाता है।
साँप के कई मंदिर हैं मौजूद
शेतफल गाँव के आसपास साँप के कई मंदिर देखने को मिलते हैं। गाँव के हरेक घर में कोबरा को पालने की प्रथा ही है, साथ ही मंदिर बनाकर उनको पूजा जाता है। गाँव के एक निवासी की मानें तो आजतक साँप ने गाँव के किसी व्यक्ति को नहीं काटा है। दरअसल लोगों से मिले प्यार और सम्मान के कारण साँप भी इनसे घुलमिल चुके हैं। जाहिर है, ऐसे में वे इन्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हैं। एक हिसाब से यहाँ का हर दिन नागपंचमी की तरह साँपों को समर्पित रहता है।
देश-विदेश से आते हैं पर्यटक
रोमांचक यात्रा के शौकीन लोगों को ये गाँव खूब आकर्षित करता है। साँप और मनुष्य की इस साझा संस्कृति को देखने दुनिया भर से लोग यहाँ आते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग साँप से डरते हैं लेकिन साहसी यात्रियों के लिए इसे मिस करना भी उतना ही मुश्किल होता है। अगर कुछ हटकर एक्सपीरियंस करना हो तो अपने लिस्ट में महाराष्ट्र के शेतफल गाँव की यात्रा को रख सकते हैं। जैसे-जैसे लोग इस गाँव के बारे में जान रहे हैं, साँप और मनुष्य की इस जुगलबंदी को देखने लोगों की भीड़ जुटने लगी है।
कब और कैसे पहुँचें
अगर आप शेतफल आकर साँपों को देखना चाहते हैं तो बरसात में प्लान बनाएँ। सर्दियों में तो ये दुबके ही होते हैं और बाकी के समय भी अपने स्वभाव की वजह से कम ही बाहर निकलते हैं। बरसात का मौसम ऐसा होता है, जब ज्यादतर साँप बाहर निकल कर माहौल का आनंद लेते हैं। बरसात के मौसम में इस गाँव में आकर साँपों के बीच समय बिताना साहसी यात्रियों के लिए बेहतरीन अनुभव दे सकता है।
पुणे शहर से ये गाँव सड़क से जुड़ा हुआ है। इसकी दूरी शहर से लगभग 200 कि.मी. है। आप किसी वाहन से पुणे होते हुए इस गाँव पहुँच सकते है। रेल से जाना चाहते हों तो मोडनिम्ब और अष्टि रेलवे स्टेशन शेतफल गाँव से नज़दीक हैं। इसके साथ ही सोलापुर जंक्शन पहुँचकर आप कैब या बस से शेतफल पहुँच सकते हैं।
आप भी अगर किसी ऐसे ही अजीब जगह के बारे में जानते हैं तो ट्रिपोटो समुदाय के साथ यहाँ शेयर करें!
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