भारत में सास-बहू सीरियल ही नहीं, ये सास-बहू मंदिर भी मशहूर है!

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भारत 'अनेकता में एकता' को एक सूत्र में बांधकर रखने वाला देश है। दुनिया के सभी धर्मों के लोग यहाँ रहते हैं और अपने-अपने धर्म का खुले रूप से पालन करते हैं। यही कारण है कि आपको यहाँ के लोगों द्वारा अनेक पूजा-पद्धतियों, देवी-देवताओं और तरह-तरह के मंदिर देखने को मिलते हैं। कई बार घूमते हुए आपको ऐसे-ऐसे लोग या फिर मंदिर मिलते हैं जो आश्चर्यचकित कर देते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के उदयपुर में सास-बहू मंदिर भी मौजूद है।

शहर से लगभग 23 किमी दूर स्थित नागदा गाँव में सास-बहू का जुड़वा मंदिर है जो कि पर्यटकों के लिए कौतुहल का विषय रहता है। सोच से परे इस मंदिर का नाम किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी है। इसके नाम को लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिलती हैं लेकिन इसका अपना एक इतिहास है।

ऐसा कहा जाता है कि किसी राजा ने महिलाओं के सम्मान को देखते हुए अपनी पत्नी के लिए एक मंदिर का निर्माण कराया था। जब मंदिर बनने लगा तो राजा की माँ बेटे की करतूत पर बेहद परेशान हो गई। उसे राजा के प्रति असंतोष हुआ कि वह पत्नी को अधिक तरजीह दे रहा है। अब राजा करे तो क्या करे, घर में ही उसने परेशानी मोल ले ली थी। अपने फैसले में सुधार करते हुए राजा ने माँ के लिए भी एक मंदिर का निर्माण करवाया।

टीवी के सास-बहु सीरियल की कहानी से अलग भी इस मंदिर को लेकर बातें प्रचलित हैं। इतिहास के पन्नों को खंगालने पर मालूम पड़ता है कि कच्छवाह वंश के राजा महिपाल की रानी भगवान विष्णु की बड़ी भक्त थी। राजा ने इसको देखते हुए रानी के लिए उनकी इष्टदेव भगवान विष्णु की पूजा के लिए मंदिर बनवाया। बाद में चलकर राजा के बेटे की शादी हुई। बहू भगवान शिव की भक्त थीं और इसलिए विष्णु मंदिर के बगल में ही भगवान शिव का मंदिर बनवाया गया।

श्रेय: विकिपीडिया कॉमन्स

Photo of उदयपुर, Rajasthan, India by Rupesh Kumar Jha

भगवान विष्णु के लिए बना इस मंदिर का मूल नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया था, जिसका अर्थ है 'एक हजार भुजाओं वाला', जो कि भगवान विष्णु का ही एक नाम है। जब दूसरा मंदिर बना तो समय के साथ नाम-उच्चारण के क्रम में सहस्त्रबाहु कहते-कहते लोग अंततः सास-बहू मंदिर कहने लगे। बता दें कि सास मंदिर, बहू मंदिर की तुलना में बहुत बड़े क्षेत्र में बना हुआ है।

मंदिर के सामने की जगह में एक तोरणद्वार है, जहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति को विशेष उत्सवों पर रखा जाता है। इसमें तीन दरवाजे तीन अलग-अलग दिशाओं में हैं, जबकि चौथा दरवाजा एक कमरे में खुलता है जो सार्वजनिक उपयोग के लिए नहीं है।

प्रवेश द्वार पर ही देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मूर्तियों को देखा जा सकता है। मंदिर की दीवारों पर जो नक्काशी की गई है वो देखने लायक है। इससे उस समय की बेहतरीन वास्तुकला का पता चलता है। इस जगह पर कई बार विदेशी आक्रान्ताओं ने हमले किए हैं और इसे नुकसान पहुँचाया है। इसके मूल स्वरूप को भले ही नष्ट करने की कोशिश की गई है लेकिन आज भी इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं!

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