माणा: भारत के पहले गाँँव के वो राज़ जिनकी खोज में आते हैं हज़ारों पर्यटक

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Photo of माणा: भारत के पहले गाँँव के वो राज़ जिनकी खोज में आते हैं हज़ारों पर्यटक by Aastha Raj

कुछ परस्तिथियों के कारण अगस्त 2017 में मैंने खुद को माणा के मशहूर गेट के सामने पाया। फूलों की घाटी और बद्रीनाथ की वो ट्रिप उसी दिन ख़त्म हो जानी चाहिए थी पर आप इसे गढ़वाल के बरसात का जादू कहिए या फिर प्रकोप, जिसकी वजह से लम्बागढ़ में लैंडस्लाइडिंग हो गयी थी और हम बद्रीनाथ में ही फंसे रह गये थे। हम अपने ट्रिप के आखिरी दिन पर होटल के कमरों में बंद नहीं रहना चाहते थे इसलिए हमने फैसला किया कि हम बहार निकलकर कुछ रोमांचक करेंगे। हम लम्बागढ़ को पीछे छोड़ कर बद्रीनाथ से 3 कि.मी. उत्तर की तरफ आगे बढ़े और वहाँ था आखिरी भारतीय गाँव, माणा।

माणा, एक ऐसा गाँव जहाँ दिव्यता का निवास है

बद्रीनाथ से 10 मिनट की दूरी पर है माणा और वहाँ तक जाने वाला रास्ता ही बेहद खूबसूरत है। पहाड़ी कुत्तों का हमारी तरफ बढ़ना, सरस्वती के तेज़ प्रवाह से बहने की आवाज़, हर तरफ सेना के कैंप और एक विशाल गाँव जिसके दरवाज़े के बाहर लिखा है ‘द फर्स्ट इंडियन विलेज’। वहाँ मौजूद हर चीज़ हमें बता रही थी कि हम सब कुछ छोड़ कर कितनी दूर निकल आए हैं।

यह गाँव 3115 मीटर की ऊँचाई पर उत्तराखंड के चमोली जिले में बसा है। इस गाँव की दिव्यता से हम बहुत ही अनोखे ढंग से परिचित हुए। गाँव के बच्चे हमें इस गाँव से जुड़ी महाभारत की कहानियाँ सुना रहे थे। बच्चे हमें गाँव की छोटी छोटी गलियों से गुज़ारते हुए व्यास गुफ़ा तक ले गए, एक ऐसी गुफा जहाँ वेद व्यास जी ने चारों वेद लिखे थे और पहली बार महाभारत पढ़ी गयी थी।

बच्चे महाभारत के किस्से ऐसे सुना रहे थे मानो वो किसी ग्रन्थ के बारे में नहीं बल्कि पड़ोस में हुई घटना के बारे में बता रहें हो। मुझे ऐसा लगता है की माणा के निवासियों ने यह मान लिया है कि यह एक देव भूमि है और यहाँ भगवान का वास था। इसलिए जब यात्री यहाँ आते हैं तो आपका अनुभव बहुत अलग होता है।

यही अनुभव माणा को बाकि जगह से अलग बनाते हैं। व्यास गुफ़ा से कुछ ही दूरी पर गणेश गुफ़ा है और माना जाता है कि भगवान गणेश ने इसी गुफ़ा में बैठकर महाभारत लिखी थी। यह गुफा भले ही पूरे विश्व में धर्म से जुड़ी होने की वजह से प्रसिद्ध है पर यहाँ के बच्चे इस गुफा में क्रिकेट खेलते हैं और औरतें पूरे दिन यहाँ सिलाई बुनाई का काम करती हैं।

माणा में घूमने की जगह और वहाँ से जुड़े कुछ मिथक

सरस्वती नदी के किनारे बैठने का आनंद

सरस्वती नदी देवी सरस्वती के नाम पर रखा गया है जिन्हें बुद्धि की देवी भी कहा जाता है। यह नाम बिलकुल इस नदी के लिए परफेक्ट है क्योंकि भारत के इतिहास का बहुत महत्वपूर्ण ग्रन्थ इसी नदी के किनारे बैठ कर लिखा गया था। इस नदी का नाम गुप्त गामिनी भी है क्योंकि यह नदी 100 मीटर तक बहने के बाद माणा के केशव प्रयाग में अलकनंदा से मिल जाती है। अगर पौराणिक कथाओं की मानें तो सरस्वती नदी की आवाज़ महर्षि व्यास के महाभारत लिखने में भंग डाल रही थी इसलिए महर्षि ने नदी को यहाँ श्राप दिया था कि नदी गायब हो जाए।

भीम पुल पर ज़रूर जाएँ, यह जगह सीधे मिथकों से जुड़ी है

सरस्वती नदी भीम पुल के पास एक विशाल पत्थर से निकलती है। नदी के धारा बहुत पतली होती है पर नदी आवाज़ कान बंद करने वाली होती है। नदी के ऊपर पत्थरों से बना एक प्राकृतिक पुल है और माना जाता है कि जब पांडव इस नदी को पार करके सवर्ग की ओर बढ़ रहे थे तब भीम ने एक बहुत बड़ा पत्थर उठाकर वहाँ द्रौपदी के लिए रखा था ताकि उस नदी को वो आसानी से पार कर सकें। भीम पुल के बगल में ही आपको 20 फुट का एक पैर का निशान भी दिखेगा और माना जाता है कि ये पैर के निशान भीम के हैं।

व्यास गुफ़ा

व्यास गुफ़ा के नाम से प्रख्यात इस गुफ़ा में महर्षि व्यास ने वेदों को चार भाग में दोबारा बाँट कर भागवद गीता लिखी थी। ऐसा माना जाता है कि इसी गुफा में व्यास ने गणेश को महाभारत सुनाई थी और गणेश ने महाभारत लिखी थी। गुफा की छत को देख कर ऐसा लगता है कि ताड़ के पत्तों पर कुछ लिखा हुआ है। इस पत्थर को व्यास पुस्तक के नाम से जाना जाता है और ऐसा मानना है कि ये पुस्तक वर्षों के बाद पत्थर में बदल गयी है।

वो जगह ज़रूर घूमें जहाँ महाभारत लिखी गई थी

गणेश गुफा वो गुफा है जहाँ भगवन गणेश ने महर्षि वाल्मीकि को बुलाकर महभारत सुनी थी और उसके बाद इस महान ग्रन्थ की रचना की थी। गणेश गुफा व्यास गुफा से कुछ ही दूरी पर है और ये सोचने वाली बात है कि क्या भगवन गणेश को इस गुफा तक व्यास की आवाज़ सुनाई दी थी। पौराणिक कथाओं के बारों में इतनी गहरायी से सिर्फ माणा के लोग ही सोच सकते हैं।

भारत के आखिरी चाय की दुकान पर चाय ज़रूर पीएँ

यात्रियों के लिए ये चाय की दुकान बहुत ही पसंदीदा है और ये सबके लिए फोटो लेने की एक परफेक्ट जगह है। यहाँ की चाय बहित स्वादिष्ट है पर मेरा सुझाव होगा कि आप यहाँ की ग्रीन टी ज़रूर ट्राई करें।

बद्रीनाथ

ये मंदिरों का शहर माणा से सिर्फ 3 कि.मी. की दूरी पर है और यहाँ पर मई से नवम्बर महीने तक श्रधालुओं की भीड़ लगी होती है। इसलिए अगर आप ज्यादा धार्मिक नहीं हैं और इस शहर के बेहतर लुत्फ़ उठाना चाहते हैं तो तो बद्रीनाथ मई से नवम्बर के अलावा किसी और महीने में जाएँ।

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माणा के आस-पास एडवेंचर

माणा पास तक की ड्राइव: एक और एडवेंचर जिसका आप माणा में लुत्फ़ उठा सकते हैं वो है माणा पास तक की ड्राइव। माणा गाँव से 50 कि.मी. दूर चीन के बॉर्डर के पास माणा पास है। वहाँ जाने के लिए जोशीमठ आर्मी स्टेशन से आपको पहले अनुमति लेनी पड़ेगी।

माणा के आस पास के ट्रेक्स:

अगर आप यात्रा के दौरान एडवेंचर के शौक़ीन हैं तो माणा के आस पास की ट्रेकिंग आपको खुश कर देगी। स्वर्गरोहिनी, सतोपंथ लेक, और वसुंधरा फॉल्स कुछ ऐसे ट्रेक हैं जो माणा से शुरू होते हैं। आपको बद्रीनाथ में कई गाइड मिल जायेंगे जो आपको इन ट्रेक पर मदद करेंगे।

खाना

माणा के आस-पास आपको खाने की सबसे बेहतरीन जगह बद्रीनाथ है। माणा में आपको कुछ चाय और टपरी मिल जाएगी पर वहाँ ज्यादा खाने की दुकाने नहीं हैं। बद्रीनाथ में आपको कई शाकाहारी रेस्टोरेंट मिल जायेंगे। आपको यहाँ शाकाहारी थाली और साउथ इंडियन फ़ूड बहुत आसानी से मिल जाएगा।

ठहरने का ठिकाना

द स्लीपिंग ब्यूटी होटल

पता: मनोहर बाघ, औली रोड, 246443 जोशीमठ, भारत

माणा में लगातार लैंडस्लाइड होने की वजह से मेरा सुझाव होगा कि आप जोशीमठ में ही ठिकाना देखें। द स्लीपिंग ब्यूटी होटल में आपको सभी सुविधाएँ मिलेंगी। आपको वहाँ नाश्ता साथ में मिलेगा और गढ़वाल पहाड़ों के नज़ारे आपको अपनी खिड़की से दिखाई देंगे।

ट्विन रूम विद माउंटेन व्यू: ₹3800/-

डबल रूम विद माउंटेन व्यू: ₹3500/-

माणा जाने का समय बेहतर समय

माणा जाने का सबसे बेहतर समय गर्मियों का मौसम है, इसलिए आप यहाँ जून से सितम्बर के बीच में ही जाएँ। अगस्त के महीने में यहाँ जाने से बचें क्योंंकि बरसात के मौसम में रास्ते बंद हो जाते हैं।

माणा कैसे पहुँचे?

हवाई यात्रा: माणा से सबसे करीबी एयरपोर्ट है देहरादून के पास जॉली ग्रांट एयरपोर्ट

ट्रेन: माणा का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन हरिद्वार है जो वहाँ से 275 कि.मी. की दूरी पर है।

रोड: माणा पहुँचने के लिए आपको देहरादून या हरिद्वार से टैक्सी, कैब या फिर बद्रीनाथ/ गोविन्दघाट के लिए बस लेनी पड़ेगी। आपकी यह यात्रा 7-8 घंटे की होगी।

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