कुमाऊँ का दिल है उत्तराखंड का ये कस्बा! नाम है, लोहाघाट!

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Photo of कुमाऊँ का दिल है उत्तराखंड का ये कस्बा! नाम है, लोहाघाट! by Musafir Rishabh

पहाड़ तो हर मौसम में सुंदर लगते हैं, अब चाहे वो खिलती हुई धूप के साथ गर्मियों का मौसम हो या ठंडी हवाएँ साथ लाता सर्दी का मौसम। इस मौसम में अगर आप पहाड़ों में जाना चाहता हैं तो कुमाऊँ का लोहाघाट कस्बा आपके लिए परफेक्ट डेस्टिनेशन है। पहाड़ों के अनछुए इलाकों की सैर की बात ही कुछ और है। लोहाघाट में हिमालय को करीब से देखने के साथ-साथ इतिहास के पन्नों को जीवंत रूप में महसूस कर सकते हैं। पहाड़ों की संस्कृति का अनूठा रंग देखना हो तो लोहाघाट आपका इंतजार कर रहा है ।

उत्तराखंड के कुमाऊँ समुद्र तल से तकरीबन 5,500 फीट की उँचाई पर चंपावत जिले में बसा है लोहाघाट कस्बा। इस मौसम में अगर पहाड़ों में घूमने का ख्याल आ रहा है तो कुदरत की ये खूबसूरत कृति आपको लुभा लेगी। राफ्टिंग और अन्य साहसी खेल के शौकीनों को भी खूब भाएगा लोहाघाट।

बालेश्वर धाम

चम्पावत नगर में स्थित है ऐतहासिक बालेश्वर धाम। यहाँ इतने मंदिर हैं कि आप भूल जाएँगे कि सातवीं सदी में बने ये मंदिर आज भी इतनी मज़बूती से खड़े हैं। ये मंदिर अपने आप में एक अलग छटा बिखरते हैं और ये सब देखना बहुत खूबसूरत है। ये मंदिर इस नगर का गौरव है। सातवीं सदी में चंद वंश के पहले राजा सोम चंद ने इस मंदिर समूह को बनवाया था। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर रखा है।

उत्तर में सोर, गंगोली, सरयू नदी, पश्चिम में ध्यानीरों, दक्षिण में लधिया नदी से घिरे इस परगना में पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। चंद राजवंश की पहली राजधानी होने का गौरव इसी चंपावत को मिला था। आप यहाँ देख सकते हैं कि पर्वतीय संसाधनों के उपयोग से बने एक से बढ़कर एक किले हैं। यहाँ नौले यानी जल संग्रह स्थल, मंदिर और बिरखम की अद्भुत वास्तुकला को देख सकते हैं।

श्यामलाताल

पहाड़ों में झील ना हो तो सुंदरता थोड़ा फीकी रहती है। नैनीताल और भीमताल की तरह लोहाघाट में भी एक प्राकृतिक झील है, श्यामलाताल। इसे यहाँ के पहाड़ की सबसे खूबसूरत झील माना जाता है। समुद्र तल से करीब 1,500 मीटर की उँचाई पर स्थित श्यामलाताल के चारों तरफ बांज, चीड़, देवदार, बुरांश जैसे पेड़ अपनी अलग ही आभार बिखरते हैं। यहाँ वो जगह भी है जहाँ स्वामी विवेकानंद ध्यान किया करता करते थे। उस आश्रम की स्थापना 1913 में खुद स्वामी विवेकानंद ने की थी। पूरे वर्ष यह झील पानी से लबालब रहती है, सूखीढांग से ठीक पहले आप इस झील का दीदार कर सकते हैं।

वाराही धाम

श्रेयः पिनटेरेस्ट

Photo of देवीधुरा, Uttarakhand, India by Musafir Rishabh

रीठासाहिब

रीठासाहिब गुरुद्वारा कुमाऊँ का सबसे मशहूर गुरुद्वारा है। यह इलाका मीठे रीठे के लिए जाना जाता है। यहाँ सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव अपने सबसे प्रिय शिष्य बाला और मरदाना के साथ यहाँ आए थे। इस जगह के बारे में मान्यता है कि मरदाना को भूख लगी तो गुरुनानक ने कहा गोरखनाथ के शिष्यों से भोजन मांगकर खा लो। मरदाना ने उन साधुओं से भोजन देने का आग्रह किया तो साधुओं ने उनको भोजन देने से मना कर दिया। तब गुरुनानक देव ने मरदाना को वहीं रीठे के पेड़ से फल खाने को कहा। रीठा वैसे तो कड़वा होता है लेकिन मरदाना ने खाया तो उन्हें उस फल का स्वाद मीठा लगा। तब से यहाँ के गुरुद्वारे का नाम रीठासाहिब पड़ गया। रीठासाहिब लोहाघाट से करीब 65 कि.मी. दूर है।

ऋषेश्वर मंदिर

श्रेयः पिनटेरेस्ट

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ये मंदिर भी बहुत पौराणिक है, इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है। भगवान शिव के इस धाम का निर्माण चंद वंश के राजा निर्भयचंद ने आठवीं शताब्दी में करवाया था। ये मंदिर लोहाघाट से 6 कि.मी. की दूरी पर है। इसके बारे में मान्यता है कि पांडव अपनी माता के साथ जब अज्ञातवास में यहाँ पहुँचे तब राजा पांडु का श्राद्ध था। तब कुंती ने प्रण लिया था कि वो श्राद्ध मानसरोवर के जल से ही करेंगी। अपनी इस इच्छा को कुंती ने सबसे बड़े बेटे युधिष्ठिर को बताया। युधिष्ठिर ने अर्जुन को इस आज्ञा को पूरा करने का आदेश दिया। अर्जुन ने गांडीव से वहीं बाण चलाया और उस स्थान पर मानसरोवर के जल की धारा पैदा कर दी। उस धारा को आज भी देखा जा सकता है।

बाणासुर किला

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हिंगला देवी

बांज के घने जंगल और पहाड़ों में बने हिंगला देवी का मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। ये मंदिर लोहाघाट से करीब 14 कि.मी. की दूरी पर है, यहाँ आप आसानी से पहुँच सकते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस जगह पर माँ भगवती अखिल तारणी चोटी तक हिंगोल झूलती थीं। इसी वजह से इसे ‘हिंगला देवी’ कहा गया। ये मंदिर ऐसी जगह पर है, जहाँ से प्राकृतिक सौंदर्य का प्रत्यक्ष दीदार होता है।

एबॉट माउंट का सुंदर नजारा

लोहाघाट से करीब 13 कि.मी. दूर 7,000 फीट की उँचाई पर स्थित है एबॉट माउंट। ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेज अधिकारी जाॅन हेराल्ड एबॉट ने इस पर्वत की खोज की थी इसलिए उन्हीं के नाम पर इस इसका नाम एबॉट माउंट पड़ा। यहाँ से हिमालय की नंदा देवी, त्रिशूल और नंदाघुती जैसी चोटियों का विहंगम नज़ारा दिखाई देता है। अधिक उँचाई पर होने की वजह से एबॉट माउंट का तापमान काफी कम रहता है। ये जगह बहुत ठंडी भी है और बेहद खूबसूरत भी।

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