
मैं भी एक घर हूँ
दूर पहाड़ों में
अकेला, अपनों के इंतज़ार में
महसूस करने उनके कदम
मैं भी एक घर हूँ
खाली हूँ, सूखा हूँ
मकड़ी के जालों से घिरा हूँ
खुली खिड़कियाँ, टूटे दरवाज़े
इन्हे सजाने की तलाश में
एक हस्ते हुए आँगन की आस में
मैं भी एक घर हूँ
अगर बनाते हो मुझे
तो यूँ छोड़ा ना करो
कभी कभी अपना वक़्त
मेरे साथ बिताया तो करो
मैं भी तुम जैसा ही हूँ
थोड़ा थोड़ा अपना सा हूँ
निभाए है मैंने भी कई रिश्ते
कुछ खट्टे तो कुछ मीठे
देखी है कई पीढ़ी तुम्हारी
जहाँ बसी है यादें हमारी
आया करो मुझसे भी मिलने
किसी न किसी बहाने
उन यादों को जीने, क्योंकि
दूर पहाड़ों में
अकेला, अपनों के इंतज़ार में
महसूस करने उनके कदम
मैं भी एक घर हूँ