कहते हैं ख़ूबसूरती देखने वालों की आँखों में होती है आपने पक्षियों को चहचाते, मोर को नाचते कईं बार देखा होगा पर कभी ख़ल्वत में इन पहाड़ियों से खुद को गुफ़्तुगू करते कभी महसूस किया है ? आज हम जिस मंज़िल की ओर जा रहे हैं वो खूबसूरत है की नहीं वो आपकी ही नज़रें बताएंगी और यह भी बतलादें आपको की उस मंज़िल का रास्ता इन्ही पहाड़ियों से होकर गुजरता है वैसे तो मैं खुद को पहचान ने की राह में निकला था| बात उन दिनों की जब हम सब कलाकार ट्रैन से दिल्ली से जम्मू माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आये थे जब दर्शन हो गये तब मेरे एक दोस्त ने इस जगह का ज़िक्र किया और कहा की हमारी ट्रैन अगले दिन की है क्यों न उन पहाड़ियों की नगरी में चला जाये|
सनासर झील
कहा जाता है यहाँ दिसंबर के दिनों बहुत बर्फ पड़ती है यह स्थान सर्दियों में बर्फ से ढका रहता है अगला स्पॉट हमारा सनासर झील था
नाग मंदिर
यह माना जाता है की यह इस क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है यहाँ यात्री आते रहते हैं यहाँ पर भगवान शिवजी की आराधना होती है|
तो प्लैन के मुताबिक़ हमें कल उधमपुर के रलवेस्टेशन से ट्रैन को पकड़ना था क्युंकि जहां हम जा रहे थे उससे उधमपुर का रैलवेस्टेशन ही पास था हम चाहते तो कटरा से उधमपुर तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल कर सकते थे और वहां से एक मिनी वैन लेकर अपनी मंज़िल की ओर जा सकते थे पर हमने कटरा से ही एक मिनी वैन करली जो सबसे पहले हमे नथाटॉप तक ले आयी |
ठंडी ठंडी हवायें चल रही थी वहां जाकर हम सब दोस्त कुछ देर बैठे और उन वादियों का आनंद लिया| वहां ही बैठ कर हमने कुछ देर अन्ताक्षरी खेली, फिर हम अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़े|
मन को मोह लेने वाली ख़ूबसूरती शयद इसे ही कहते हैं हमारा एक दोस्त गिटार भी लाया था तो हम सबने उसके साथ मिलकर जुगलबंदी की | यह झील नथाटॉप से लगबग 10 किलोमीटर की दुरी पे होगी| यहाँ हमने पैराग्लाडिंग भी की| मेरे कुछ दोस्तों को घुड़सवारी का बहुत शोक था तो उन्होंने घुड़सवारी करके अपने मन को बहलाया|
खुला मैदान इतने लम्बे लम्बे देवदार के पेड़, शहर से शोर से दूर मुझे युहीं अपनी नानी का घर याद आ गया बचपन में छुटियां मनाने वहां जाया करता था| हमने कुछ फोटो झील के किनारे लिए| वातावरण इतना मनमोहक था की वहां से जाने का मन ही नहीं हो रहा था हम चाँद निकलने तक वहीं बैठे रहे| हमने पाया की कुछ यात्री तो टेंट लगाकर वहीं रात गुजरने लगे पर हमारे एक दोस्त ने होटल बुक कराया था तो हमें वहीं जाना पड़ा|
होटल झील से जायदा दूर नहीं था रात को हम सबने बोन फायर लगाई फिर पासिंग दा पास खेलने लगे| उस रात हमने बहुत मज़े किये| दोस्तों ने तरह तरह के नाच देखए और हंस हंस के तो पेट में दर्द होगया था|
मेरी सुबह कुछ एक कविता की पंक्तियों के साथ हुई-
ऊंचाईयों से देखता हूँ खुद को जब भी देखता हूँ अपनी परछाईयों में देखता हूँ मैं तुझमे हूँ तू मुझमे है यह इल्म है मुझे हर जख्म को कुछ गहराईयों से देखता हूँ।
होटल से झील का नज़ारा कुछ ऐसा था
सुबह सुबह उठ कर हम फ़्रेश हुए और ब्रेकफास्ट किया फिर निकल पड़े पटनीटॉप में और नई जगहों की ख़ोज में|
बिलो की पॉवरी
शिव गर्ह
बगलिहार डैम
इन सब जगह पर घूमने के बाद हम वापिस उधमपुर रलवेस्टेशन की और निकल पड़े हमारे पास समय कम था वरना और भी जगह थी जहां घूम सकते थे जैसे शुद्ध महादेव , चेन्नई - नश्री टनल ,पटनीटॉप सर्कुलर रोड , यह सब पटनीटॉप में ही है कुछ भी कहो यह वादियां याद बहुत आएँगी|
मेरा एक दोस्त गया था जब बर्फ पड़ी थी पटनीटॉप में उस समय की ख़ूबसूरती का वर्णन कुछ इस प्रकार है|