ूजब पहाड़ी गाँवों की बात आती है तो दिमाग में ख्याल आता है सुंदर पहाड़ों का नज़ारे, पत्थर और लकड़ियों के घरों में रहते लोग, ताज़ा स्वादिष्ट खाना और मुस्कुराते हुए काम करते हुए पहाड़ी लोग। लेकिन ये भारत है मेरे दोस्त, अगर यहाँ आम सी दिखती ज़िंदगी के बीच कुछ अनोखा नहीं देखा, तो शायद आपको नज़रे सही जगह पर लगाने की ज़रूरत है। आज आपको उत्तराखंड के एक ऐसे गाँव ले चलते हैं जहाँ के लोग ऊँचे पहाड़ों पर मैराथॉन भी भागते हैं और अपनी गाँव की सुंदर ज़िंदगी को इंस्टाग्राम पर भी बखूबी उतारते हैं! तो चलिए सिरमोली के सफर पर!
सिरमोली का सफर
उत्तराखंड के मुन्सियारी के पास में ही सिरमोली नामक एक गाँव है जो टूरिस्टों की लिस्ट में ज़रूर होना चाहिए। यहाँ की संस्कृति और विरासत देखने लायक है तो वहीं नेपाल और तिब्बत की सीमा से सटा होने के कारण इसका अपना एक ख़ास महत्व है। चूंकि ये छोटा सा मगर खूबसूरत जगह बहुतायत टूरिस्टों की नज़र से बचा हुआ है लिहाज़ा भीड़ कम रहती है।
गाँव के लोग चलाते हैं अपना इंस्टाग्राम अकाउँट
आपको यहाँ पहुँच कर हैरानी हो सकती है कि नेटवर्क काम करता है कि नहीं, लेकिन लाख दिक्कतों के बावजूद यहाँ के स्थानीय लोग इस खूबसूरत स्थान की जानकारी पर्यटकों तक पहुँचाने के लिए वॉयसेस ऑफ मुन्सियारी के नाम से अपना खुद का इंस्टाग्राम चैनल चलाते हैं। वे इंस्टाग्राम चैनल के माध्यम से इस गाँव की रोचक कहानियों को शेयर करते हैं। वे इंस्टाग्राम पर जंगलों, पहाड़ों की कहानियों के साथ ही अपनी लाइफ स्टाइल को भी दिखाते हैं।
दिलचस्प बात है कि इंस्टाग्राम चैनल शुरू करते वक्त सबको संदेह था कि ये लोग कम संसाधन और जानकारी के कैसे तस्वीरें खींच पाएँगे, अच्छे फोटो कैप्शन दे पाएँगे? लेकिन इन लोगों ने इसमें महारत हासिल कर ली है। इस काम को शुरू करने और मुमकिन बनाने में ट्रैवलर शिव्या नाथ का बड़ा हाथ रहा। उन्होंने इंस्टाग्राम की बेसिक जानकारी देने से लेकर फोटोग्रफी की वर्कशॉप और साथ ही इंस्टाग्राम और इंटरनेट चलाने के लिए फोन का इंतज़ाम भी किया।
ये इंस्टाग्राम चैनल शहरी और ग्रामीण लोगों के बीच ब्रिज का काम करता है। इस अनोखी पहल के कारण एक तरफ गाँव के लोग इंटरनेट और टेक्नॉलजी के जानकार हो रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर फूड ब्लॉगर्स और टूरिस्टों के ग्रुप इस गाँव में आने लगे हैं।
यहाँ के लोग दौड़ते हैं मैराथन
यहाँ के लोग अपने इस गाँव के लिए एक्टिविटीज में कोई कसर नहीं रखते हैं। गर्मी के दिनों में सालाना यहाँ 1 सप्ताह के लिए उत्सव का आयोजन होता है जिसे ‘हिमाल कलासुत्र’ के नाम से जाना जाता है। इस फेस्टिवल की खास बात ये है कि इसमें सभी स्थानीय लोग एक साथ मिलकर 8000 फीट की ऊँचाई पर 20 कि.मी. लंबी मैराथन में भाग लेते हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान ग्रामीण पक्षियों की फोटोग्राफी के साथ इसको लेकर कार्यशाला आयोजित करते हैं। इस उत्सव के दौरान टूरिस्ट यहाँ आना पसंद करते हैं और वे भी इसमें बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं।
महिलाएँ हैं दो कदम आगे, चलाती हैं होमस्टे
अगर आप ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं होता। सिरमोली को टूरिस्टों की लिस्ट में ऊपर रखने के लिए यहाँ की महिलाएँ भी अपना योगदान कर रही हैं। टूरिस्टों को कोई ख़ास दिक्कत ना हों इसलिए यहाँ महिलाएँ लगभग 15 होमस्टे का संचालन करती हैं। मात्र ₹700 से ₹1600 में आपको रहने व खाने के लिए बढ़िया होमस्टे उपलब्ध हो जाता है जिसमें तमाम आधुनिक सुविधाएँ रहती हैं। होमस्टे में रहते हुए आप ग्रामीणों से स्थानीय भोजन व संस्कृति का अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
कैसे पहुँचें सिरमोली
सिरमोली मुनसियारी से केवल 1 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, लिहाज़ा आप बस व ट्रेन दोनों से ही यहाँ पहुँच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है जो कि सिरमोली से 124 कि.मी. दूर है। काठगोदाम से आप कैब या बस के माध्यम से मुनसियारी होते हुए सिरमोली आ सकते हैं। एहतियात के लिए बता दूँ कि अगर आप गर्मी के दिनों में भी यहाँ की यात्रा करते हैं तो गर्म कपड़े साथ में लेना ना भूलें!
सिरमोली के नज़ारे
इस खूबसूरत जगह की यात्रा करने पर ही असल में आपको पता चलेगा कि प्राकृतिक नजारों से भरपूर यह स्थान पर्यटकों के लिए क्यों खास है! सिरमोली कुमाऊं क्षेत्र के पंचचुली रेंज की पहाड़ियों से घिरा हुआ है और इस गाँव के पास से ही एक नदी बहती है जिसे गोरी गंगा कहते हैं। प्रकृति ने इस गाँव को जिस प्रकार नज़ारों से सजाया है वैसे ही यहाँ के लोग आपको आश्चर्यचकित करते हैं। दूरदराज और ओझल रहने के बावजूद यहाँ के लोग मैराथन में दौड़ लगाते हैं और सोशल मीडिया के जरिए अपने गाँव को टूरिस्टों की नज़र में लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच यहाँ के लोगों की जिंदादिली आपका दिल जीत लेती है। यहाँ बर्फीली चोटियों पर सुबह में छिटकती सूरज की रोशनी को निहारना एक यादगार अनुभव दे सकते है। हाल के वर्षों में यहाँ जो टूरिस्टों के आने का सिलसिला चल निकला है, उसका पूरा श्रेय इन ग्रामीणों को ही जाता है।