रातों- रात ये गाँव बन गया भूतों का बसेरा: कुलधरा की कहानी

Tripoto
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हमारे देश में कहानियों और उनसे जुड़ी अनूठी जगहों की कोई कमी नहीं है। और ये कहानियाँ सुनाने में हमारा राजस्थान तो मंझा हुआ खिलाड़ी है। जहाँ उँचे खड़े महल राजसी ठाठ-बाट की कहानियाँ बयान करते हैं, वहीं ऐसे भी गाँव की कहानी है जो रातों रात विरान हो गए है। वो गाँव हैं कुलधरा और खाबा । खाबा और कुलधरा एक दूसरे से लगभग 15 कि.मी. की दूरी पर हैं और ये दोनों जगह 84 गाँवों के समूह का हिस्सा थे।

जैसलमेर से सैम सैंड ड्यून्स को जाने वाली रोड पर वाले ये गाँव आज भी अपनी कहानी बताने के लिए खड़े है।

कुलधरा और खाबा की कहानी

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श्रेय: चंद्रा

लोककथाओं के हिसाब से सभी 84 गाँव एक ही रात में वीरान कर दिए गए थे। राजा ने कुलधारा की एक सुंदर लड़की से शादी करने का प्रस्ताव गाँव वालों के आगे रखा और 3 दिनों में गांव वालों से जवाब देने को कहा था। गाँव वालो ने राजा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि शायद राजा क्षत्रिय, मांसाहारी था और गाँव वाले शाकाहारी ब्राह्मण। राजा के गुस्से से बचने के लिए उन्होने गाँव को छोडनें का निर्णय लिया।

कुलधरा में एक बहुत ही बुढा आदमी है, जो इस छेत्र की कहानियाँ सुनाता है। अगर आप भी वहाँ जा रहे है तो उस बूढ़े आदमी से मिलने का वक़्त ज़रुर निकालें, जो अपनी पीठ पर एक बैग के साथ घूमता है और तरह-तरह के शब्द बोलता है।

कुलधरा का इतिहास

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लोककथाएँ और स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि यह शाकाहारी पालीवाल ब्राह्मणों के गाँव है जो तीसरी या चौथी शताब्दी के आस-पास राजस्थान के पाली जिले से जैसलमेर में विस्थापित हुए थे। ये ब्राह्मण समुदाय लगभाग 200 से 300 साल पहेले तक काफी सक्रिय थे व तेजी से तरक्की कर रहे थे।

कुलधरा और खाबा की वास्तुकला

श्रेय: मिर्ज़ा असद बेग

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यह गाँव व्यवस्थित तरीके से बना था। हैरानी की बात यह है कि दोनों गाँव कुलधारा और खंब में सभी पुराने घर बिना छत के है। सिर्फ एक मंदिर और छत्री ही है जिनकी छत है। सभी घर साधारण तरीके से पत्थरों का इस्तेमाल करके बने है और हर घर में एक आगंन है। इस ही आधार पर कुलधारा गाँव में पुरातत्त्व विभाग ने दोबारा घर बनवाए है। ज्यादातर घर एक मंजिल के थे और कुछ घर दो मंजिला। यह गाँव माता-रानी मंदिर को केन्द्र में रखकर उसके चारों ओर फैला हुआ था। गाँव वालो को पानी उपलब्ध करवाने के लिए, गाँव के बाहार सीढ़ियों वाले कुँए है ।

श्रेय: उमर अहसन

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कुलधरा और खाबा में यही अंतर है की कुलधरा में चौकी और किला है। यह किला गाँव के पास एक पहाड़ी पर है। यह किला कारवां के रूट पर था, और शायद नजर रखने के लिए बनाया गया था । चौकी और किले के अलावा उस युग के बर्तन और वनस्पति के अंश भी देखे जा सकते हैं। यहॉं पर एक पानी रखने का बड़ा गिलास भी है जिस पर सुंदर पेंटिंग की गई है।

खाब किले में मौजूद एक स्थानीय व्यक्ति ने हमें स्थानीय जीवन के बारे में बताया और कहा की सुबह और शाम को यहाँ बहुत सारे मोर आते है, जो हमें यहाँ चारो ओर बिखरे मोर के पंखों को देख कर समझ आ रहा था। जब वह मोर के बारे में बता रहा था तब उसने मेरी पत्नी के चमकते चेहरे को देखा और तुरंत जाकर कुछ मोर पंख लाकर मेरी पत्नी को दिए।

कुलधरा की कहानी सालों से सुनाई जा रही है, लेकिन ये आज भी उतनी ही रोमांचक लगती है। ये कहानी सुनते ही उस जगह को खुद अपनी अनुभव करने से खुद को रोक पाना बेहद मुश्किल है।

तो आप भी इस विराने के अनुठे अनुभव को महसूस करके आएँ और अपनी यात्रा के बारे में Tripoto पर लिखकर यात्रियों के समूह के साथ साझा करें।