लद्दाख, कश्मीर और हिमाचल ये तीनों ही हर किसी ट्रैवलर की लिस्ट में ड्रीम डेस्टिनेशन होते हैं और साथ ही साथ लगने वाले पैसों के बारे में सोचकर सकुचाते रहते हैं। पर कहते हैं ना जिसने ठान लिया उसने जीत लिया। ऐसा ही कुछ कारनामा जोधपुर के दो घुमक्कड़ों ने मात्र 1900 रुपये में ये तीनों जगह घूमकर, कर दिखाया है। आइए जानते हैं इनकी ये रोचक और साहसिक कहानी .......
जोधपुर
यहाँ के एक वकील आकाश विश्नोई और लॉ की पढ़ाई कर रहे अजय मेहरा नामके दो युवकों ने लगभग 3000 किलोमीटर की ये यात्रा 28 दिनों में पूरी की। जोधपुर से वापस जोधपुर की इस पूरी यात्रा में शिमला से जम्मू तक का हिस्सा हिचहाइकिंग के जरिए पूरा किया। दोनों बताते हैं कि पहले ये यूट्यूब पर ट्रैवल वीडियो देखकर प्रेरित होते थे और घूमना इनका शौक था। वहीं से इस यात्रा की प्लानिंग शुरू हुई, लक्ष्य था कम से कम पैसों में इन जगहों को देखना। तैयारी के लिए हिचहाइकिंग के बारे मे इन्होंने अच्छे से जानकारी इकट्ठा की थी।
शिमला
बस क्या था, जोधपुर से दिल्ली होते हुए शिमला तक ट्रेन के जरिए यात्रा की जिसमें 480 रुपये लगे। शिमला घूमने के बाद बाद हिचहाइकिंग यानि लोगों से लिफ्ट लेकर आगे की यात्रा शुरू की। शिमला से किन्नौर, स्पीति, मनाली, लद्दाख होते हुए कश्मीर से जम्मू तक सफ़र इसी तरह से करना था। शिमला से आगे के सफ़र के लिए दोनों हाई वे पर पहुंचे और एक ट्रक से लिफ्ट लेकर निकल पड़े।
29 मई को शुरू हुए इनके इस सफर के कुछ मुख्य पड़ाव ये थे.....
हिमाचल
नारकंडा
शिमला से ट्रक में लिफ्ट लेकर नारकंडा पहुंचे 31 मई को। नारकंडा शिमला के नजदीक एक एकांत और रमणीय स्थान है।
सांगला
1 जून को नारकंडा से निकलकर करचम होते हुए
2 जून को ये सांगला पहुंचे।
चितकुल
करचम से सांगला और चितकुल तक की रोड दिल दहला देने वाली है जिसे पार करते हुए ये 3 जून को चितकुल पहुंचे। ये हिमाचल के किन्नौर जिले मे आता है।
रेकांग पियो
4 जून को किन्नौर के जिला मुख्यालय रेकांग पियो पहुंचे। स्पीति सर्किट का एक मुख्य स्टॉप है और काफ़ी ज्यादा खूबसूरत है।
नको
रेकांग पियो से निकलकर 5 जून को नको गांव पहुंचे ये जगह और आगे का सफर स्पीति की दुर्गमता को दर्शाता है।
काजा
स्पीति नदी के साथ बसा हुआ काजा, स्पीति का सबसे आधुनिक और व्यावसायिक स्थान है। ये दोनों 6 जून को काजा पहुंचे।
लोसार
7 जून को लोसार पहुंचे।
स्पीति घाटी के सफ़र के दौरान स्थानीय लोग अपने रीति रिवाजों को दिखाने के लिए दोनों को एक स्थानीय विवाह समारोह में ले गए। वहां के ये अनुभव वाकई नया था।
मनाली
चार दिन बाद यानी 11 जून को मनाली पहुंच गए। इस तरह से इन्होंने स्पीति का पूरा सर्किट घूम लिया।
सारचू
मनाली से सिस्सु - केलॉंग - बारालाचा ला होते हुए 14 जून को दोनों सारचू पहुंचे। यहां से हिमाचल की समाप्त हो गई थी और आगे लद्दाख शुरू होने वाला था। 15 जून को ये लोग लेह पहुंच गए।
लद्दाख
लेह
लेह में इनका अनुभव काफ़ी रोचक और बढ़िया रहा। लेह के स्थानीय लोगों की मेहमान नवाजी लाजवाब थी। यात्रा के इस पड़ाव पर इन्हें कुल पांच रातें ही सड़क पर टेंट में गुजारनी पड़ी बाकी दिन लद्दाखी लोगों ने न सिर्फ सोने की जगह दी बल्कि रात का खाना और सुबह का ब्रेकफास्ट भी कराया। दोनों लद्दाखी लोगों के व्यवहार के कायल हो गए।
लेह में दो जगह ये अपना सामान भूल गए तो स्थानीय लोगों ने खुद यात्रा कर इनका सामान इन तक पहुंचाया। ये बात इनके लिए बहुत ही भावुक कर देने वाली थी।
नूब्रा घाटी
16 जून को लेह निकले और किसी समय दुनिया के सबसे ऊंचे मोटरेबल पास के तौर पर जाने जाने वाले और अत्यधिक फेमस खारदूंग ला पास से होते हुए बेहद सुन्दर नूब्रा घाटी पहुंचे। अगले दिन दिस्किट होते हुए आगे का सफर जारी रखा।
गुरुद्वारा पत्थरसाहिब
श्रीनगर- लेह हाई वे पर लेह से आगे कुछ किमी चलने पर यह पवित्र और फेमस गुरुद्वारा पड़ता है। 17 जून को यहां पहुंच दो दिन तक दोनों रुके और भारतीय सेना ने इन्हें घर जैसा माहौल दिया। इसी दौरान इन्होंने
चांग ला
गुरुद्वारा पत्थरसाहिब में गुजारे दो दिन के स्टे के दौरान 18 जून को चांगला पास और पैंगोंग झील के खूबसूरत दृश्यों को अपनी आँखों में बटोरते हुए...
मेराक गांव
...पैंगोंग से मेराक गांव होते हुए 19 जून को वापस पत्थरसाहिब, लेह पहुंचे और रात गुजारी।
फाटू ला
अगले दिन यानी 20 जून को श्रीनगर लेह हाईवे पर स्थित सबसे ऊंचा पास देखते हुएआगे बढ़ते रहे।
कारगिल
इसी दिन कारगिल की पवित्र भूमि को देखा, कारगिल वार मेमोरियल देखा।
द्रास
और इसी दिन दुनिया के सबसे ठंडे इलाक़ों में से एक जहां लोग रहते हैं यानी द्रास को देखा। इसके बाद जोजी ला पास आता है जहां से लद्दाख की सीमा खत्म होती है और कश्मीर शुरू होता है।
जम्मू कश्मीर
जोजी ला
20 जून को ही लद्दाख पार कर जोजी ला पहुंचे और खूबसूरत नजारों को बलखाती हुए सड़कों से देखते हुए आगे बढ़ते रहे।
सोनमर्ग
20 जून की इतनी लंबी यात्रा में ये लोग सोनमर्ग पहुंचे जो श्रीनगर से महज 50 किमी दूर है। यहां की खूबसूरती ने इन्हें बचे हुए दिन की यात्रा करने के लिए नयी ऊर्जा दे दी थी।
श्रीनगर
कश्मीर के ऊपर आतंकवाद के गहरे असर को देखते हुए स्थानीय दोस्तों ने केवल सेना के वाहन से लिफ्ट लेने की सलाह दी थी जिसे इन्होंने माना और ज्यादातर सेना के वाहनों में ही लिफ्ट लेकर यात्रा की। स्थानीय लोग बाहरी लोगों को लिफ्ट देने से कतराते हैं तो बाहरी लोग यहां लिफ्ट लेते हुए असहज दिखे।
पुलवामा
श्रीनगर की डल झील देखते हुए ये लोग दिन के आखिर में पुलवामा पहुंच गए और वहीँ रेस्ट किया। पुलवामा का नाम सुनते ही यहां आतंकवाद के षडयंत्र का शिकार हुए भारतीय जवानों की शहादत की याद आ गयी।
रामबन
21 जून को पुलवामा से बनिहाल होते हुए जम्मू के हाई वे पर पहुंचने के बाद जब आगे बढ़े तो बडियाल टनल के पास लैंड स्लाइड हो गया और 24 घंटों तक दोनों फंसे रहे गए तब सेना के 9 जवानों एक ग्रुप इन्हें मिला। ये सभी छुट्टी पर जा रहे थे। आकाश और अजय ने इनसे बात की तो पता चला कि वो सब समय बर्बाद न करके पैदल ही एक अन्य स्थानीय रास्ते से आगे जा रहे थे। ये दोनों भी उनके साथ पैदल ही आगे चल पड़े। इस दौरान रामबन तक लगभग 35 किमी की यात्रा इन दोनों ने जवानों के इस ग्रुप के साथ पूरी की।
जम्मू
22 जून को इसके आगे की जम्मू तक की यात्रा दोनों ने सेना की ही एक वैन से लिफ्ट लेकर पूरी की।
दिल्ली
23 जून को जम्मू से निकलकर अंबाला से होते हुए दिल्ली पहुंचे। 25 जून को आखिर वापस जोधपुर पहुंचकर अपनी ये अनोखी यात्रा इन दोनों ने पूरी की।
बेशक ये खूबसूरती, साहस और रोमांच से भरी यात्रा हर एक ट्रैवलर के लिए प्रेरणा देने वाली है खासकर उन लोगों के लिए जिनको पैसों की कमी ने यात्रा के बेहतरीन और सच्चे अनुभव से दूर रखा है।
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